For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल:गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं (भुवन निस्तेज)

है खोया क्या  किसे वो आज हर पल ढूँढ़ते हैं,

गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं ।

 

सभाओं में कोई चर्चा कोई मुद्दा नहीं है,

सभी नेपथ्य में बैठे हुए हल ढूँढते हैं ।

 

उन्हें होगा तज्रिबा भी कहाँ आगे सफर का,

वो सहरा में नदी, तालाब, दलदल ढूँढ़ते हैं ।

 

कहीं से खुल तो जाये कोठरी ये आओ देखें,

दरों पर खिडकियों पर कोई सांकल ढूँढ़ते हैं ।

 

यूँ भी बेकारियों का मसअला हो जायेगा हल,

जो अब तक खो दिया है चल उसे कल ढूँढ़ते हैं ।

 

यहाँ पर भी किसी दिन कोई लंगर सा लगा था,

ये बच्चे आज भी शायद वो पत्तल ढूँढ़ते हैं ।

 

सड़क पर जम गई यादों की पपड़ी देखिये तो,

इधर गुजरा हो शायद ख्वाब घायल ढूँढ़ते हैं ।

 

हैं निकले घोंसलों को छोड़ पहली बार बाहर,

परिंदे खो गए शायद उन्हें चल ढूँढ़ते हैं ।

 

जो कल तक पेड़ में लगने न देते कोई पत्ता,

बड़ी ही बेहयाई से वही फल ढूँढ़ते हैं ।

मौलिक व अप्रकाशित...

Views: 949

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2015 at 12:20am

आदरणीय भुवन भाई, आपकी ग़ज़लों का तेवर तो सदा से बोलता हुआ रहा है. यही आपकी प्रस्तुतियों का कमाल है भी. अलबत्ता, भाषा के कारण कई बार कई कथ्य सटीक नहीं बन पाते. लेकिन आप जिस तरह से हिन्दी भाषा को निभा लेते हैं वह हम सभी के लिए गर्व का विषय है.
आपकी यह ग़ज़ल मुझे आकर्षित कर रही है कि मैं इस पर शेर दर शेर अपनी बात कहूँ--

है क्या खोया किसे वो आज हर पल ढूँढ़ते हैं, ............. इसे ’है खोया क्या’ कहें तो स्वर या लय स्वयं बन जायेगा.
गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं । ..
बहुत खूब मतला हुआ है आदरणीय भुवन भाई !

सभाओं में कोई चर्चा कोई मुद्दा नहीं है,
यहाँ नेपथ्य में से ही सभी हल ढूँढ़ते हैं ...
’में से ही’ अनावश्यक जैसा प्रतीत हो रहा है. ’सभी नेपथ्य में बैठे कई हल ढूँढते हैं’ जैसा कुछ किया जा सकता है.

तजुर्बे भी कहाँ उनको रहे होंगे सफ़र के,
वो सहरा में नदी, तालाब, दलदल ढूँढ़ते हैं ।
वाह ! कमाल किया है आपने !

कहीं से खुल तो जाये कोठारी ये आओ देखें, .. ......... ’कोठारी’ टंकण त्रुटि है. यह ’कोठरी’ ही होगा.
दरों पर खिडकियों पर कोई सांकल ढूँढ़ते हैं ।
बहुत खूब ! बहुत अच्छे ! वैसे ’खिड़कियों पर’ को क्या ’खिड़कियों में’ किया जा सकता है ?

यूँ भी बेकारियों का मुद्दआ हो जायेगा हल,
जो अब तक खो दिया है चल उसे कल ढूँढ़ते हैं ।
आपने इसी इसी ग़ज़ल में ’मुद्दा’ का प्रयोग किया है. अब उसी शब्द को ’मुद्दआ’ की तरह लेना उचित नहीं है. हर किसी को शब्दों को मनमाने ढंग से प्रयोग करने से परहेज़ करना चाहिये. आप नियत कर लें कि किस शब्द को कैसे लिखना है और उसी पर दृढ़ रहें. वर्ना ’तज़ुर्बा’ शब्द जिसका इसी ग़ज़ल के एक शेर में प्रयोग हुआ है, ग़लत हो जायेगा. उस हिसाब से सही शब्द ’तज़्रिबा’ है. न कि तज़ुर्बा.  

यहाँ पर भी किसी दिन कोई लंगर सा लगा था,
ये भूखे आज भी शायद वो पत्तल ढूँढ़ते हैं ।
वाह वाह ! समाज का अंतर क्या खूब सामने आया है ! वैसे यदि ’भूखे’ को ’बच्चे’ कर दें तो कहन सटीक हो जायेगी. ऐसा मुझे लगता है. आप भी बताइयेगा.

सड़क पर जम गई यादों की पपड़ी देखिये तो,
इधर गुजरा हो शायद ख्वाब घायल ढूँढ़ते हैं ।
यह शेर अस्पष्ट है. यह और समय चाहता है, खयाल बहुत बढिय अहै. इसे और स्मय दीजिये, भाईजी.

हैं निकले घोंसलों को छोड़ पहली बार बाहर,
परिंदे खो गए शायद उन्हें चल ढूँढ़ते हैं ।
उला के हैं निकले को अवश्य थे निकले कर दें. अन्यथा व्याकरणजन्य दोष हो जायेगा.
बढिया शेर हो रहा है.

जो कल तक पेड़ में लगने न देते कोई पत्ता,
बड़ी ही बेहयाई से वही फल ढूँढ़ते है ।
उला बहुत अच्छा नहीं हो पाया भुवन भाई. इसे कुछ और कोण दीजिये. कोई पत्ता क्यों नहीम् रहने देगा ? या बच्चों की कारस्तानियों को लेकर कह रहे हैं. इस भाव को और व्यापक करना उचित होगा.

इस ग़ाल प्रस्तुति केलिए हार्दिक धन्यवाद और अशेष शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 2:24pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आपको हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर आदरणीय.

Comment by Abhinav Arun on August 30, 2015 at 7:30pm

समकालीन सरोकारों पर सुन्दर और सशक्त ग़ज़ल , बधाई !

Comment by Harash Mahajan on August 30, 2015 at 12:32pm

"

यहाँ पर भी किसी दिन कोई लंगर सा लगा था,

ये भूखे आज भी शायद वो पत्तल ढूँढ़ते हैं ।"....वाह बहुत खूब कहा है....बहुत ही उम्दा पेशकश रही है आपकी आदरणीय भुवन निस्तेज  जी | दिली दाद !1

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service