"मम्मा ,देखो आपके वाइट बाल.. वन ,टू.." लाड़ से उसके बालों में कंघी करते हुए, उसकी सात साल की बेटी चिल्लाई I
"मेरे बालों में दर्द हो रहा है, अब छोड़ " किताब में आँखें गड़ाए वो बोली I
बिटिया अचानक चुप हो गई थी I कंघी करते हुए हाथ भी रुक गए थे I
"क्या हुआ "? उसने बेटी को आगे खींचते हुए पूछा I
"मम्मा ,जिसके बाल वाइट हो जाते हैं वो ओल्ड हो जाता है ना ? बंटी की दादी के भी बाल वाइट हैं ,वो अलग कमरे में रहती हैं ,कोई उनके पास भी नहीं जाता I मम्मा क्या आप भी कभी ओल्ड हो जाओगी. .? और ...और फिर.... " वो उससे चिपट कर रोने लगी I
उसका दिल कह रहा था कि प्यार से बेटी के सिर में हाथ फेरकर उसे हमेशा की तरह आश्वस्त करे, पर दिमाग़ पूछ रहा था कि ...क्या आश्वासन देगी ?
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,इस कथा को लिखते समय दिमाग़ के किसी कोने में मेरा टारगेट था न्यूक्लीयर परिवार का ढांचा ,जो मेरे अनुसार बच्चों में बढ़ती जा रही असुरक्षा और असंवेदनशीलता का कारण है I जिस परिवार में बच्चे दादा दादी के साथ बड़े होते हैं वहां उनके मन में ऐसे प्रश्न नहीं उठते हैं क्यों किउनके लिए बूढा होना स्वाभाविक प्रक्रिया है I कथा में ये मर्म उभर कर नहीं आ पाया I आपके कथा के विश्लेषण और उत्साह वर्धन के लिए मै पुनः आभार प्रेषित करती हूँ सादर
//आँसूओं से सने बेटी के चेहरे के ऊपर अचानक उसकी सास का चेहरा उग गया जिसने बेटे के न्यूक्लीयर परिवार में थोड़ी सी जगह पाने की आस में गाँव में ही दम तोड़ दिया था I उस चेहरे की चीरती नज़र अब वो नहीं झेल पाएगी I //
आपने इतनी अच्छी कोशिश की इसके लिए हर्दिक धन्यवाद आदरणीया.
लेकिन, आदरणीया बुरा न मानियेगा, यह परिणाम मेरी आशानुरूप नहीं है. इससे बेहतर फिर तो पहले वाला अंत ही था.
वस्तुतः मैं कमसेकम शब्दों में अधिक प्रभाव चाह रहा था.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,आपके कहे अनुसार अंतिम पंक्तियों को कुछ इस तरह साधने की कोशिश की है
"मम्मा ,देखो आपके वाइट बाल.. वन ,टू.." लाड़ से उसके बालों में कंघी करते हुए, उसकी सात साल की बेटी चिल्लाई I
"मेरे बालों में दर्द हो रहा है, अब छोड़ " किताब में आँखें गड़ाए वो बोली I
बिटिया अचानक चुप हो गई थी I कंघी करते हुए हाथ भी रुक गए थे I
"क्या हुआ "? उसने बेटी को आगे खींचते हुए पूछा I
"मम्मा ,जिसके बाल वाइट हो जाते हैं वो ओल्ड हो जाता है ना ? बंटी की दादी के भी बाल वाइट हैं ,वो अलग कमरे में रहती हैं ,कोई उनके पास भी नहीं जाता I मम्मा क्या आप भी कभी ओल्ड हो जाओगी. .? और ...और फिर.... " वो उससे चिपट कर रोने लगीI आँसूओं से सने बेटी के चेहरे के ऊपर अचानक उसकी सास का चेहरा उग गया जिसने बेटे के न्यूक्लीयर परिवार में थोड़ी सी जगह पाने की आस में गाँव में ही दम तोड़ दिया था I उस चेहरे की चीरती नज़र अब वो नहीं झेल पाएगी I
अवश्य आदरणीया प्रतिभाजी.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , रचना पर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार , अंतिम पंक्ति को फिर से साधने की कोशिश के साथ फिर उपस्थित होती हूँ सादर
आदरणीया प्रतिभाजी, लघुकथा के विन्यास ने मुग्ध कर दिया. इसकी ढेर सारी बधाइयाँ.
लेकिन इस प्रस्तुति की अंतिम पंक्ति का विन्यास और भी सान्द्र तथा और भी संप्रेषणीय हो सकता था. सच कहूँ तो अनुभवहीनता आड़े आ गयी.
मुझे विश्वास है, आप इस पंक्ति को और बेहतर कर सकती हैं. यह पंक्ति यदि कायदे से सध जाये तो आपकी यह लघुकथा आपकी बेहतरीन लघुकथाओं में गिनी ही नहीं जायेगी, बल्कि लम्बे समय तक याद की जायेगी.
शुभेच्छाएँ
जाने ये क्या हो जाता है और कब घर की स्वामिनी सहसा धीरे - धीरे हासिये पर धकेली जा चुकी होती है । ये एक अनुत्तरित प्रश्न है जो दिल को चीर जाता है । ऐसी परिस्थितियों के लिए उम्रदराज होने पर अपने जीवन के लिए नये आयाम ढुंढने की बेहद जरूरत है । हमेशा की तरह शानदार लघुकथा की प्रस्तुति हुई है आदरणीया प्रतिभा जी । बधाई
आदरणीया प्रतिभा जी दिल को छूती हुई मार्मिक लघुकथा कही है आपने. आश्वासन के बिंदु पर लाकर कथ्य को चरम पर जिस झटके से छोड़ा है जो दिमाग झन्ना रहा है. अद्भुत प्रस्तुति. दिल से बधाई ... ढेर सारी बधाई
बहुत अच्छी र्लाघुकथा बन पड़ी आदरणीया प्रतिभा जी. कभी एसा समय आ ही जाता है कि कोई क्या आश्वासन दे ,समझ ही नही पाता. प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें
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