2122 1212 112/22
ज़ख़्म सूखे निशान छोड़ गये
जैसे अपना बयान छोड़ गये
लौट के यूँ गये मेरे दिल से
मानो ख़ाली मकान छोड़ गये
सारी खुश्बू हवायें ले के गईं
ये भी सच है कि भान छोड़ गये
राग खुशियों के छिन्न भिन्न किये
मित्र, ग़मगीन तान छोड़ गये
उड़ गये जब परिंदे बाग़ों से
पीछे सब सून सान छोड़ गये
हाले दिल क्या बयान कर पाते ?
हम से कुछ बे ज़ुबान छोड़ गये
खुद चढ़ाई चढ़े हैं वालिद , अब
तिफ्ल खातिर ढलान छोड़ गये
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
हाले दिल क्या बयान कर पाते ?
हम से कुछ बे ज़ुबान छोड़ गये ...
हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय गिरिराजभाईजी.
आदरनीय गिरिराज जी . इस शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई कबूल करें
आदरणीय हर्ष भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरणीया कांता जी , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ।
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।
आदरनीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।
आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
जहाँ तक सून सान की बात है , मै शब्द कोष मे देख कर ही लिखा हूँ --
शब्द कोष - आदर्श हिन्दी शब्द कोष - संशोधित संस्करण - पेज न. 788 , दूसरा कालम का 11वाँ शब्द । सूनसान = निर्जन , सुनसान । दिया हुआ है । आप देख सकते हैं ।
आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार । आपने सही कहा है , मुझे भी मालूम है , तकाबुले रदीफ दोष है कुछ शे र मे , लेकिन अभी दूर नही कर पा रहा हूँ प्रयास मे हूँ । आपका आभार ।
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