For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी ,,,,,,,

2122  2122  2122  212

यार मेरे आज फिर से दिल दुखाने आ गए

इस बहाने वो चलो मिलने मिलाने आ गए

जब कभी परदेश में  मुझको सताया यादों ने

साथ देने दादी के किस्से सुहाने आ गए

बोझ से लगते हैं उनको आज बूढ़े माँ-पिता

जेब में  बच्चों के जब भी चार आने आ गए

पढ़ किताबें शहर से जब गाँव आया तो मुझे

बस अना से दूर रहना सब बताने आ गए

कर चुका मैं मय से तौबा फिर हुआ ऐसा यहाँ

हुश्न वाले आँखों से मुझको पिलाने आ गए

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on September 8, 2015 at 5:27pm

दुनिया बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी

शोहरत की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़
गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी

मर्ज ऐ इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में
अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी

Comment by Harash Mahajan on September 8, 2015 at 1:37pm

आदरणीय गुमनाम जी बेहतरीन  ग़ज़ल हुई है दाद कुबूल करें । सादर !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 7, 2015 at 3:45pm

बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है. सादर 

यादों ने मुझको सताया जब कभी परदेश में 

साथ देने दादी के किस्से सुहाने आ गए

Comment by भुवन निस्तेज on September 7, 2015 at 3:00pm

भाई बहुत अच्छी ग़ज़ल बन गयी है. पर इन दो अशआरों पर गौर फरमाएँ तो और अच्छा होगा शायद इनमे तकाबुले रदीफैन का दोष है...

जब कभी परदेश में  मुझको सताया यादों ने

साथ देने दादी के किस्से सुहाने आ गए

**************************************

*****************************************

पढ़ किताबें शहर से जब गाँव आया तो मुझे

बस अना से दूर रहना सब बताने आ गए

Comment by Ravi Shukla on September 7, 2015 at 2:48pm

आदरणीय गुमनाम जी उम्‍दा ग़ज़ल हुई है दाद कुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service