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शमशीरे ज़फ़ा ऐसे चली दिल के शहर पर
ये मिसरा बेबह्र हो रहा है
इसे यूं कर सकते है
शमशीर चल गई है ऐसे दिल के शह्र में
आदरणीय पंकज जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई आपको बधाई
अब बिन्दुवार बात करें -
1. बह्र- आपने बह्र 221 2121 1222 212 ली है किन्तु वास्तव में प्रचलित बह्र यह है 221 - 2121 - 1221 - 212
आपकी ग़ज़ल भी इसी बह्र पर है. आपने पूरी ग़ज़ल इसी बह्र में लिखी है बस ऊपर गलत बह्र लिखी है.
इखलास के ख़याल गरल कर के चल दिए।
अरमाने दिल तमाम तरल कर के चल दिए।।
मतला बढ़िया है बस काफिया गरल/तरल के कारण अरल निर्धारित हो रहा है जो आगे अशआर में निभाया नहीं गया है अतः मतला यूं कह सकते है-
इखलास के ख़याल गरल कर के चल दिए।
अरमाने दिल तमाम कँवल कर के चल दिए।। अब काफिया 'अल' निर्धारित हुआ है तो मसल/खलल/विफल/गजल को सपोर्ट करता है
इसी प्रकार रदीफ़ 'कर के चल दिए' कर के साथ के का प्रयोग अच्छा नहीं लग रहा है अतः रदीफ़ 'कर वो चल दिए' किया जा सकता है.
शमशीरे ज़फ़ा ऐसे चली दिल के शहर पर (पे रखने से तकाबुले रदिफेन दोष आ रहा है इसलिए इसे पर कर दिया )
चुन चुन के सारे ख़ाब मसल कर के चल दिए।।
मेरी वफ़ा ए इश्क़ की कीमत तो देख लो ............ देखिये को देख लो करने से तकाबुले रदिफेन दोष समाप्त हो जाएगा
चैन ओ सुकून में ही ख़लल कर के चल दिए।।
मेरे खुदा ए इश्क़ की रहमत तो देख लो .................... देखिये को देख लो करने से तकाबुले रदिफेन दोष समाप्त हो जाएगा
सज़दे सलाम सारे विफल कर के चल दिए।।
अपनी भी आदतों को कहाँ हम सके बदल...... तकाबुले रदिफेन दोष हटाने के लिए किया है बाकी 'बदल सके' ज्यादा अच्छा लग रहा है
उनके करम कलम से ग़ज़ल कर के चल दिए।।
आपको बह्र साधते देखना बहुत अच्छा लग रहा है. सादर .....
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