For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कीचड़ .....
सड़क पर फैले हुए कीचड से
एक कार के गुजरने से
एक भिखारन के बदन पर
सारा कीचड फ़ैल गया
अपनी फटी हुई साड़ी से कीचड़ पौंछते हुए
उसने अपने मन की भंडास निकालते हुए कहा
अमीरजादे गाड़ी से कीचड उछालते हैं
और पलट के भी नहीं देखते
इन्हें भूख से बिलबिलाते हुए
पेट को भरने के लिए रक्खा
भीख का कटोरा नजर नही आता
बस फ़टे कपड़ों से झांकता
बदन नज़र आता है
मेहरबानी पेट पर नहीं
बस बदन पर होती है
वो खुद पर गिरे कीचड़ को
साफ़ करने का असफल प्रयास करती रही
तभी एक वृद्ध ने उसे
बेटी कह कर पुकारा
मानो इस एक शब्द में
सारा जहाँ का प्यार
उमड़ आया हो
बेटी ! ये रुमाल लो
और अपने मुंह पर
गिरे कीचड़ को साफ़ कर लो
बाबा इस रुमाल से
ये कीचड़ तो मिट जाएगा
मगर उस कीचड़ को कैसे साफ़ करूं
जो लोगों की नजरों में है
बाबा, मैं बेटी के सम्बोधन से
सिहर जाती हूँ
न जाने किसने इस शब्द को
कलंकित कर डाला
फुटपाथ पर फैंक
स्वयम को पवित्र कर डाला
खुले आसमान के नीचे
धरती की गोद में
मैं न जाने कब तक रोती रही
कंकडों के बिछोने पर सोती रही
वक्त के क्रूर हाथों में
तिल तिल करके बढती रही
बचपन ने कब नजरें फेरी
और जवानी झुर्रियों से ढक गयी
कुछ खबर ही न हुई
हर नजर में
बदन की भूख से थक गई हूँ
न जाने मैं किस वहशी की
नाजायज पहचान हूँ
बाबा इस रुमाल से मैं
मुंह पर गिरे कीचड को तो साफ़ कर लूंगी
लेकिन सभ्य समाज के
असभय कीचड को आखिर
किस रुमाल से साफ़ कर पाऊँगी … ?

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 7, 2015 at 2:54pm

आदरणीय Jayprakash Mishra जी रचना पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति का दिल से शुक्रिया।

Comment by Jayprakash Mishra on October 6, 2015 at 7:08pm
Adarniya Suneel Sarna ji ,Apaki rschana sochane par vivash karati hai,Badhaai
Comment by Sushil Sarna on September 24, 2015 at 2:27pm

आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी आपका कथन सही है। भविष्य में इसकी पुनरावृति न हो इसका बंदा ख्याल रखेगा। आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया का शुक्रिया। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2015 at 8:26pm

सरना जी  मिथिलेश सर ने सही कहा  कविता कुछ कथात्मक हो गयी है  . आप योग्य कवि है आपको क्या बताना .

Comment by Sushil Sarna on September 22, 2015 at 4:10pm

आदरणीय मिथिलेश जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया एवं सुझाव का दिल से शुक्रिया। कभी कभी रचनाकार सृजन करते हुए भावनाओं में बह जाता है और रचना को छोटा करने में हिचकिचाता है कि कहीं कोई भाव रचना छोटा करने में कट न जाए। बाकी मैं आपकी बात से इतफ़ाक रखता हूँ और भविष्य में कोशिश करूंगा की रचना की लम्बाई से मूल भाव आहत न हो। आपकी इस आत्मीयता का दिल से शुक्रिया। कृपया स्नेह बनाये रखें। मैं इसी पोस्ट को आदरणीय योगराज सर के निर्देश पर पुनः सुधार के बाद  पोस्ट कर रहा हूँ जो शायद आपको संतुष्ट करेगी। सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 3:41pm

आदरणीय सुशील सरना सर, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. प्रस्तुति तनिक इतिवृत्तात्मक हो गई है, कथ्य का विस्तार इसके मर्म की तुलना में अधिक है. इसे और साधा जाकर सुगढ़ किया जा सकता है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service