आत्मिक प्रेमतत्व …
जलतरंग से
मन के गहन भावों को
अभिव्यक्त करना
कितना कठिन है
हम किसको प्रेम करते हैं ?
उसको !
जिसके संग हमने
पवन अग्नि कुण्ड के चोरों ओर
सात फेरे लिए
या उसको
जिसके प्रेम में
स्वयं को आत्मसात कर हम
जीवन के समस्त क्षण
उसके नाम कर दिए
एक प्रेम
जीवन के अंत को जीवन देता है
और दूसरा अंतहीन जीवन को अंत देता है
जिस प्रेम को बार बार
शाब्दिक अभिव्यक्ति की आसक्ति हो
उसका अमरत्व मरीचिका समान है
और जिस प्रेम की अभिव्यक्ति
मौनता के आवरण में निशब्द अभिव्यक्त हो
वही आत्मिक प्रेमतत्व की पहचान है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्रतिभा जी आपके स्नेहवचनों का हार्दिक आभार।
जिस प्रेम को बार बार
शाब्दिक अभिव्यक्ति की आसक्ति हो
उसका अमरत्व मरीचिका समान है
गूढ़ भाव लिए सुंदर रचना , हार्दिक बधाई आपको आदरणीय
आदरणीयडॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आत्मीय प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना की समीक्षात्मक प्रतिक्रिया प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। सर ''पवन अग्नि कुण्ड के चोरों ओर '' पंक्ति में ''चारों'' के स्थान पर ''चोरों'' टंकित हो गया जो टंकण त्रुटि है कृपया इसे'' चारों '' ही पढ़ें। इसके अतिरिक्त कोई अक्षरी त्रुटि हो तो कृपया का कष्ट करें ताकि तदनुसार संशोधन किया जा सके। धन्यवाद।
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
सुन्दरते तेरी जय !
सत्य कथन ! आदरणीय बहुत सुन्दर वैचारिक कविता हुई है । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय सुशील सरना सर, अक्षरी संबधी त्रुटियाँ एक सशक्त रचना को भी प्रभावहीन बना देते है. सादर
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई |
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