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तुम इसे तवज्जो न देना........

तुम इसे तवज्जो न देना ....


ये बादे सबा अगर
तुम्हें मेरे दर्द का पैगाम दे जाये
तो अपने ज़हन में
करवटें लेते खुशनुमा अहसासों पर
तुम तवज्जो न देना

किसी तारीक शब को
अब्र से झांकता माहताब
पीला नज़र आये
तो तन्हाई से गुफ़्तगू करती
मेरी खामोशियों पर
तुम तवज्जो न देना

सड़क पर चलते
तुम्हारे पाँव के नीचे
कोई ज़र्द पत्ता चीखे
तो गर्द में डूबे
मेरी मुहब्बत के
बदलते मौसम पर
तुम तवज्जो न देना

हाँ इक गुजारिश है तुमसे
जब मैं जहां से रुख़्सत हो जाऊं
मेरी लहद पर
मुझसे मिलने ज़रूर आना
मेरे अधूरे अनमानों को
चराग़े मुहब्बत से
रोशन कर जाना
मेरे सफर का आगाज़ तुम थे
अब इसे एक खूबसूरत
अंजाम भी दे जाना
जिस्म न सही
रूह तो हर लम्हा तुम्हारे साथ रहेगी
बस मेरी आखिरी इल्तिज़ा है तुमसे
मैं नहीं हूँ
तुम इसे तवज्जो न देना

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on October 15, 2015 at 3:08pm

आदरणीया  मिथिलेश वामनकर जी रचना में निहित भावों पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 1:16pm

आदरणीय सुशील सरना सर बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 1:18pm

आदरणीया गिरिराज भंडारी  जी रचना में निहित भावों पर आपकी आत्मग्राही प्रशंसा का दिल से शुक्रिया। आपने सही पहचाना टंकण त्रुटि से अरमानों के स्थान पर अनमानों हो गया ,इस और ध्यान आकर्षित करना का हार्दिक आभार। कृपया इसे अरमानों ही पढ़ें। आपके तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 1:14pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी रचना में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 1:13pm

आदरणीया प्रतिभा जी रचना के मनोभावों ने आपको प्रभावित किया मेरा प्रयास सफल हुआ।  आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का दिल से शुक्रिया। नेट व्याधान से आभार व्यक्त नहीं कर पाया , क्षमा चाहूंगा। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2015 at 1:01pm

आदरनीय सुशील सरना जी , बहुत भाव पूर्ण हृदय ग्राही लगी आपकी रचना ! दिल से बधाइयाँ ।

मेरे अधूरे अनमानों को   -- शायद आप अरमानों कहना चाहते हैं ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2015 at 10:42am

वाह  वाह.....  आ० सुशील सरना जी,उर्दू के बेहतरीन शब्दों को भावों के साथ बखूबी गूँथा गया दिल छू गई ये प्रस्तुति बहुत खूब दिल से बधाई स्वीकारें | 

Comment by pratibha pande on October 2, 2015 at 6:04pm

 'तुम इसे तवज्जो न देना 'सारी रचना प्रतिबिम्ब है इस एक गहरी पंक्ति का ,खूबसूरत बनी है पूरी रचना ,आपको ढेरों बधाई आदरणीय सुशीलजी 

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2015 at 4:44pm

आदरणीय   डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी'  जी  रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by कंवर करतार on October 1, 2015 at 1:48pm

'सरना' साहिब ,खूबसूरत कविता के लिए बहुत बहुत बधाई I

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