तृषा जन्मों की .....
मर्म धर्म का समझो पहले
फिर करना प्रभु का ध्यान
क्या पाओगे काशी में
है हृदय में प्रभु का धाम
पावन गंगा का दोष नहीं
सब है कर्मों का फल
अच्छे कर्म नहीं है तो फिर
गंगा सिर्फ है जल
मानव भ्रम में जीने का
क्यों करता अभिमान
सच्चा सुख नहीं तीरथ में
व्यर्थ भटके नादान
कर्म प्रभु है, कर्म है गंगा
कर्म है सर्वशक्तिमान
राशि रत्न और ग्रह शान्ति से
कैसे मुशिकल हो आसान
अपने मन की कंदरा में
तू झाँक जरा इंसान
तुझमें ही वो छुप कर बैठा
देख तेरा भगवान
सच्चे मन से उसका हो जा
कर उसका ही ध्यान
तृषा जन्मों की मिट जाएगी
होगा तेरा कल्याण
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीयागिरिराज भंडारी जी रचना के मर्म पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील भाई , सच कहा आपने कर्म ही प्रधान है ! सुन्दर सीख देती आपकी रचना के लिये बधाई आपको ।
आदरणीया प्रतिभा जी रचना के मर्म पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Manoj kumar Ahsaas जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
मर्म धर्म का समझो पहले
फिर करना प्रभु का ध्यान
क्या पाओगे काशी में
है हृदय में प्रभु का धाम
ये मर्म समझ में आ जाये तो स्वयंभू भगवानों की शरण में लोग जाएँ ही क्यों ,बहुत सार्थक प्रस्तुति ,बधाई आपको आदरणीय
सच्चे मन से उसका हो जा
कर उसका ही ध्यान
तृषा जन्मों की मिट जाएगी
होगा तेरा कल्याण--------------------------सुन्दर विचार
आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई आपको
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