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तृषा जन्मों की .....

तृषा जन्मों की .....

मर्म धर्म का समझो पहले
फिर करना प्रभु का ध्यान
क्या पाओगे काशी में
है हृदय में प्रभु का धाम
पावन गंगा का दोष नहीं
सब है कर्मों का फल
अच्छे कर्म नहीं है तो फिर
गंगा सिर्फ है जल
मानव भ्रम में जीने का
क्यों करता अभिमान
सच्चा सुख नहीं तीरथ में
व्यर्थ भटके नादान
कर्म प्रभु है, कर्म है गंगा
कर्म है सर्वशक्तिमान
राशि रत्न और ग्रह शान्ति से
कैसे मुशिकल हो आसान
अपने मन की कंदरा में
तू झाँक जरा इंसान
तुझमें ही वो छुप कर बैठा
देख तेरा भगवान
सच्चे मन से उसका हो जा
कर उसका ही ध्यान
तृषा जन्मों की मिट जाएगी
होगा तेरा कल्याण

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 21, 2015 at 1:12pm

आदरणीयागिरिराज भंडारी जी रचना के मर्म पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2015 at 12:07pm

आदरणीय सुशील भाई , सच कहा आपने कर्म ही प्रधान है ! सुन्दर सीख देती आपकी रचना के लिये बधाई आपको ।

Comment by Sushil Sarna on September 18, 2015 at 3:42pm

आदरणीया प्रतिभा जी रचना के मर्म पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on September 18, 2015 at 3:41pm

आदरणीय  Manoj kumar Ahsaas  जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on September 18, 2015 at 3:40pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on September 18, 2015 at 3:40pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by pratibha pande on September 17, 2015 at 9:01pm

मर्म धर्म का समझो पहले 
फिर करना प्रभु का ध्यान 
क्या पाओगे काशी में 
है हृदय में प्रभु का धाम

ये मर्म समझ में आ जाये तो स्वयंभू भगवानों की शरण में लोग  जाएँ ही क्यों ,बहुत  सार्थक प्रस्तुति ,बधाई आपको आदरणीय 

Comment by मनोज अहसास on September 17, 2015 at 8:37pm
बहुत सूंदर आदरणीय सुशील सरना सर जी
धर्म का वास्तविक स्वरुप आपने बड़े सहज ढंग से समझाया है
सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 17, 2015 at 8:01pm

सच्चे मन से उसका हो जा
कर उसका ही ध्यान
तृषा जन्मों की मिट जाएगी
होगा तेरा कल्याण--------------------------सुन्दर विचार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 5:22pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई आपको 

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