For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कब हुयी थी बात जनता से

कब आए थे तुम हमारे गाँव

कब फांकी थी तुमने गलियारे की धूल

कब तुम्हारी खादी पर जमी थी गर्द की परतें

कब दिया था आख़री भाषण यहाँ पर डूब कर पसीने में

कब किया ब्यालू यहाँ के एक हरिजन संग

और पानी था पिया अकुआगार्ड का जो साथ थे लाये

गाँव को तो याद है वह दिन, भूल जाते हो मगर तुम

देश की संसद बड़ी है, डूब जाते हो वही तुम

देश का दुर्भाग्य है वह नहीं मिल पाता कभी भी

चाह कर तुमसे बड़े बंधन है अजब विकराल

दारिद्र्य, लाचारी, गरीबी, बेबसी के  

अनेकानेक साथ में हैं प्राचीरें भी बड़ी दुर्गम खडी   

लोग कहते है सुरक्षा भी बड़ी है आपकी 

पलक झपकी भी नहीं कि घेर लेते है कमांडो

बड़े तगड़े विकट मुस्टंडे वीर है वे

नहीं,  हम क्या हमारी औकात क्या

हम नही मिल सकते विधाता से कभी भी देश के  

फिर करेंगे वे ही कृपा आयेंगे कभी इस गाँव में

और पूजेंगे उन्हें हम फिर इसलिए कि जान दें वे बख्श

और तो सब कुछ लिया है छीन -घर, जमीं, खेती और माटी देश की  

हवा, पानी, रोटी और जीने की आजादी ललक सब कुछ 

हम उन्हें सर पर बिठाएंगे विजय के गीत गायेंगे पुनः

इस धरा पर तो वही भगवान् है सबके,

 

पांच साल में एक दिन होती है पहचान I

भक्त कही जाते नहीं आते है भगवान् II

जय हो !

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 419

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 8:12am

क्या बात है !!  आ. बड़े भाई गोपाल जी , नेताओं की जनम पत्री खूब बांची है , आपने । सत्य वचन !! आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by kanta roy on September 24, 2015 at 1:08pm
गाँव को तो याद है वह दिन, भूल जाते हो मगर तुम
देश की संसद बड़ी है, डूब जाते हो वही तुम...... बेहद सधे हुए लहजे में तीखी बातों की धार उतर सी जाती है पढते - पढते सहसा । बहुत खूब अभिव्यक्ति हुई है कटाक्ष लिये । बधाई स्वीकार करें आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2015 at 12:23pm

बढ़िया प्रस्तुति हुई है आदरणीय गोपाल सर.

पांच साल में एक दिन होती है पहचान I

भक्त कही जाते नहीं आते है भगवान् II

जय हो !.............................................................. जय हो............

इस प्रस्तुति पर बधाई आपको, सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on September 23, 2015 at 10:53am

बहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई ।

 सादर ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service