फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
तू भले कुछ भी कहे मैं कामना करता रहूँगा
रूप रस की चाहना- आराधना करता रहूँगा।
जल रहा संसार खुद से आग अपनी ही जलाये
बाँट आया प्यार घर- घर याचना करता रहूँगा।
जो लगाते आग चलते ज्वाल उनको हो मुबारक
मैं चला हूँ मेघ बनकर साधना करता रहूँगा।
दे रही जो दर्द चपला कर सकूँ बे-दर्द उसको
हो धरा मैं सोंख लूँ यह कामना करता रहूँगा।
आदमी हो आदमी का हो गया सब भूलकर भी
आदमी के हित रहूँ मैं प्रार्थना करता रहूँगा।
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मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Comment
आदरणीय मिश्रा जी, प्रेरणा देने हेतु आभार आपका।
आदरणीय वामनकर जी,गजल की सराहना कर प्रेरणा देने के लिए आभार आपका।
आदरणीय गोपाल भाई, आभार आपका।
अदरणीय रवि जी, आभार आपका, सादर।
आदरणीय मनन जी बह्र-ए-रमल को खूब निभाया है. बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. आपको हार्दिक बधाई
बहुत बढ़िया. प्रवाह तो देखते ही बनता है .
आदरणीय मनन जी
ग़ज़ल में शिल्प के अनुकूल सुन्दर प्रवाह बन पड़ा है बधाई
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