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अपने अपने हिस्से की हम लोग किस्मत ले गये- ग़ज़ल

2122 2122 2122 212
जब लिया इक दूसरे से हमने रुख़सत ले गये
अपने अपने हिस्से की हम लोग किस्मत ले गये

निस्बतों की अहमियत जो जानते थे लोग वो
याद अपनी दे गये हमसे मुहब्बत ले गये

ताक़ पर रिश्तों को रख जज़्बात बेच आये कहीं
आज तन्हा रह गये जो सिर्फ़ दौलत ले गये

अपनी वो मस्रूफ़ियत से एक लम्हा छोड़कर
पास बैठे दो घड़ी क्या मेरी फुरसत ले गये

वो हसद का एक शो’ला मेरे दिलमें डालकर
काम अपना कर दिया मेरी वजाहत ले गये

रोककर राहें, मुहब्बत का मुझे दे वास्ता
कुछ न उनसे हो सका तो मेरी हसरत ले गये

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 11:05pm
दूसरी तरफ आपने जो इशारा किया उस पर फिर कोशिश करता हूँ कि कुछ बेहतर हो जाये

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 11:04pm
आदरणीय मिथिलेशजी हार्दिक आभार आपका। मतला दोनों मिसरों में पूरा है, पहले मिसरे को अधूरा छोड़ा है मैंने और दूसरे मिसरे में मैंने पुष्टि की है कि पहले मिसरे में क्या कहा है।
//जब लिया इक दूसरे से हमने रुख़सत ले गये// यहाँ स्वत: प्रश्न उभरता है क्या ले गये?
//अपने अपने हिस्से की हम लोग किस्मत ले गये//
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 24, 2015 at 7:45pm

शिज्जू भाई-  जब लिया इक दूसरे से हमने रुख़सत ले गये ---यह पंक्ति व्याकरण सम्मत नहीं जान पड़ती . हमारे भ्रम को आप ही दूर करें . बाकी गजल  सुपर्ब .

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 24, 2015 at 6:43pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है..

Comment by मनोज अहसास on September 24, 2015 at 2:36pm
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है आदरणिय शकूर साहब
हर शेर बेहतरीन
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2015 at 1:07pm

आदरणीय शिज्जु भाई बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है- 

जब लिया इक दूसरे से हमने रुख़सत ले गये.................. इस मिसरे में कुछ कमी लग रही है 
अपने अपने हिस्से की हम लोग किस्मत ले गये

निस्बतों की अहमियत जो जानते थे लोग वो
याद अपनी दे गये हमसे मुहब्बत ले गये................ बढ़िया 

ताक़ पर रिश्तों को रख जज़्बात बेच आये कहीं
आज तन्हा रह गये जो सिर्फ़ दौलत ले गये............... शानदार 

अपनी वो मस्रूफ़ियत से एक लम्हा छोड़कर
पास बैठे दो घड़ी क्या मेरी फुरसत ले गये................ वाह वाह 

वो हसद का एक शो’ला मेरे दिलमें डालकर
काम अपना कर दिया मेरी वजाहत ले गये............ सानी में कुछ गुंजाइश है क्या? बाकी शेर बढ़िया है.

रोककर राहें, मुहब्बत का मुझे दे वास्ता
कुछ न उनसे हो सका तो मेरी हसरत ले गये............. बढ़िया 

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