For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 1222 1222 1222

तेरे नैनों के पर्दे को उठा लेती तो बेहतर था।
निगाहों को मेरे मुख पर टिका देती तो बेहतर था।।

हाँ बेहतर तो यही होता कि तुझमें खो ही जाता मैं।
औ तुम भी मेरी आँखों में समा जाती तो बेहतर था।।

न खाली हो सके तुम भी बहुत मशरूफ थे हम भी।
घड़ी कोई हमें तुमसे मिला देती तो बेहतर था।।

पता है, मेरे इस दिल में कई सपने सुहाने थे।
तू अपने ख़्वाब सारे जो बता देती तो बेहतर था।।

यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का बंधन।
कदम तुम ही अगर आगे बढ़ा देती तो बेहतर था।।


मौलिक अप्रकाशित

Views: 674

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 22, 2015 at 1:56pm
आदरणीय कान्ता रॉय मैम सादर धन्यवाद। आपकी प्रतिक्रिया, मनोबल बढ़ाती है।
Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 6:34am
यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का बंधन।
कदम तुम ही अगर आगे बढ़ा देती तो बेहतर था।।..... वाह !!! बहुत ही शानदार ! बधाई हो ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 21, 2015 at 4:58pm
आदरणीय राहिला जी सादर धन्यवाद।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 21, 2015 at 4:58pm
आदरणीय मिथिलेश सर रचना को आपका आशीर्वाद मिला; अच्छा लग रहा। ये आप लोगों के सहयोग और ओबीओ मंच की देना है।
Comment by Rahila on October 21, 2015 at 4:17pm
आद. पंकज जी! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल "न खाली हो. ..तो बेहतर था "वाह कितनी खूबसूरत ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 21, 2015 at 3:28pm

आदरणीय पंकज जी, बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. सभी अशआर बेहतरीन है. आदरणीय आमोद जी की इस्लाह से मतला भी निखर गया. इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं. ये शेर तो बस कमाल है -

न खाली हो सके तुम भी बहुत मशरूफ थे हम भी।
घड़ी कोई हमें तुमसे मिला देती तो बेहतर था।।..................... वाह वाह 

यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का बंधन।
कदम तुम ही अगर आगे बढ़ा देती तो बेहतर था।।........... लाजवाब 

सादर 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 19, 2015 at 9:08pm
आमोद बिन्दौरी जी के सुझाव के अनुरूप मतला पढ़ा जाये-
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 19, 2015 at 9:07pm
बहुत दिनों बाद आगमन;स्वागत है- आपका भी और आपके सुझाव का भी मनोज भाई।
Comment by मनोज अहसास on October 19, 2015 at 7:59pm
आदरणीय पंकज जी बहुत खूब
बेहतर
मतला थोड़ा और समय चाहता हूँ
सादर
Comment by amod shrivastav (bindouri) on October 19, 2015 at 7:40pm
जो तुम नैनो के पर्दे को उठा लेती तो बेहतर था ,,,,,,,,को कर के देखिये बांकी बहुत सुन्दर है बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
10 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
18 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service