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ग़ज़ल :- ज़माना जान चुका था,हर इक ख़बर में था

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

ज़माना जान चुका था,हर इक ख़बर में था
वो इक जुनून जो उस वक़्त मेरे सर में था

हर एक शख़्स खिंचा जा रहा था तेरी तरफ़
न जाने कौन सा जादू तिरी नज़र में था

कभी कभी मुझे उसकी भी याद आती है
सफ़ेद बिल्ली का बच्चा जो अपने घर में था

इसी सबब से परेशान थे मेरे दुश्मन
क़बीला सारा मेरी बात के असर में था

सुनाई देतीं भी कैसे ग़रीब की चीख़ें
तुम्हारा ध्यान तो उस वक़्त माल-ओ-ज़र में था

उड़ान भरते रहे आसमान की जानिब
जहाँ तलक भी "समर",ज़ोर बाल-ओ-पर में था

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 585

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Comment by Samar kabeer on October 28, 2015 at 9:55pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 28, 2015 at 9:54pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 28, 2015 at 9:53pm
आली जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 28, 2015 at 9:52pm
जनाब जयनित कुमार जी,आदाब,इस ग़ज़ल में कोई भी उर्दू शब्द कठिन नहीं है,यदि आपको किसी शब्द का अर्थ समझने में मुश्किल आ रही है तो आप पूछ लीजिये ,मैं बता दूँगा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 28, 2015 at 9:47pm
मोहतरमा राहिला जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 28, 2015 at 9:46pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 28, 2015 at 9:46pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 28, 2015 at 9:45pm
मोहतरमा कांता रॉय जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 28, 2015 at 1:58pm

आदरणीय समर कबीर जी 

एक और शानदार ग़ज़ल गुनगुनाने का अवसर प्रदान करने के लिए आभार 

इस लाज़वाब ग़ज़ल पर दिल से दाद और मुबारकबाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 27, 2015 at 9:18pm

हर एक शख़्स खिंचा जा रहा था तेरी तरफ़
न जाने कौन सा जादू तिरी नज़र में था---वाह्ह्ह्ह  वाह्ह्ह 

सुनाई देतीं भी कैसे ग़रीब की चीख़ें
तुम्हारा ध्यान तो उस वक़्त माल-ओ-ज़र में था----कमाल के अशआर निकाले हैं भाई जी 

हर शेर पर दाद क़ुबूल फरमावें 

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