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अतुकांत - समय को भी तो एक दिन बूढ़ा होना है -- गिरिराज भंडारी

वो ममता मयी छुवन हो

जो माँ की कोख से निकलते ही मिली

या हो उसी गोद की जीवन दायनी हरारत

या

तुम्हारी उंगलियों को थामे ,

चलना सिखाते 

पिता की मज़बूत, ज़िम्मेदार हथेली हो

या हो

जमाने की भाग दौड़ से दूर , निश्चिंत

कलुषहीन  हृदय से

धमा चौकड़ी मचाते , गिरते गिराते , खेलते कूदते

बच्चे

या फिर स्कूलों कालेजों की किशोरा वस्था की निर्दोष मौज मस्तियाँ

 

या हो वो जवानी में पारिवारिक , सामाजिक ज़िम्मेदारियों स्वीकारते ,जूझते मज़बूत कान्धे

सब कुछ तो बिना मांगे दिया है

उसी समय ने, सभी को

और स्वीकार किया सभी ने आनंद के साथ

 

उसी समय ने ,

जिसने आज लगा दी है सफेदी तुम्हारे बालों पर

खींच दी है आड़ी तिरछी रेखायें

अनुभवों की

तुम्हारी शक़्ल से ले कर तमाम जिस्म में

नज़र कमज़ोर् , झुकी कमर , थरथराती ऊँगलियाँ

 

चढ़ता सूरज भी तो डूब ही जाता है , एक समय

फिर क्यों मुश्किल है स्वीकार पाना

ख़ुद का डूब जाना,

या कहूँ , स्वीकार कर पाना समय की सच्चाई को  

और फिर ,

समय को भी तो एक दिन बूढ़ा होना है

चुक जाना है , विलीन हो जाना है

उसी शून्य में

जिसमें विलीन हो मिलती है सभी को

एक नई शुरुवात ॥

***********************

मौलिक एअवँ अप्रकाशित

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Comment by pratibha pande on October 26, 2015 at 7:02pm

समय को भी तो एक दिन बूढ़ा होना है

चुक जाना है , विलीन हो जाना है

उसी शून्य में

जिसमें विलीन हो मिलती है सभी को

एक नई शुरुवात ॥.............गहन अर्थ लिए लिए सार्थक रचना ,बधाई आपको आदरणीय  गिरिराज जी 

Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 5:49pm
समय को भी तो एक दिन बूढ़ा होना है
चुक जाना है , विलीन हो जाना है
उसी शून्य में
जिसमें विलीन हो मिलती है सभी को
एक नई शुरुवात ------ जीवन दर्शन से भरपूर बेहद उम्दा ये अतुकांत रची है आपने आदरणीय गिरिराज जी। बधाई स्वीकार करे।
Comment by Samar kabeer on October 25, 2015 at 11:04pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,मैं पहले भी कह चुका हूँ और फिर कहता हूँ कि आपकी अतुकांत कविताऐं मुझे बहुत मुतास्सिर करती हैं,इस कविता ने भी बहुत गहराई तक मेरे मन को छुवा है,मौज़ू ,ख़याल,अल्फ़ाज़ की बंदिश हर लिहाज़ से ये कविता
परफ़ेक्ट है,दिल की असीम गहराईयों से दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ,क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 25, 2015 at 9:53pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, समय के साथ साथ व्यक्ति के भिन्न पड़ावों पर हालात व सम्पर्कों का सुंदर, सटीक , दार्शनिक रूप से चित्रण किया है, बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय जी।

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