22—22—22—22—22—2 |
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गुलशन में फिर भौंरा आया, बढ़िया है |
फूलों से काटों का नाता, बढ़िया है |
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आज उफ़क तक सरसों देखी, दिल बोला- |
नीली चूनर, पीला लंहगा, बढ़िया है |
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मकसद अपना हँसकर वो बतलाते ये |
पैसा पैसा केवल पैसा, बढ़िया है |
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चाहत के पिंजरे में हमने कैद रखी |
छोटी सी संतोषी चिड़िया, बढ़िया है |
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बादल ने जब दिल पर खंजर फेंके तब |
सब कहते है सावन आया, बढ़िया है |
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एक जगह जब पानी ठहरे, डरता हूँ |
पत्तों से फिर पानी फिसला, बढ़िया है |
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बूंदों की बारात दुआरे से बोली |
खेतों का हरियाला बन्ना, बढ़िया है |
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अंधियारे से रात मिलन को आतुर थी |
सूरज थोड़ा ठिठका ठहरा, बढ़िया है |
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उसने फिर दीवान सुनाया, क्या कहते? |
सिर्फ हमारे मुंह से निकला- बढ़िया है |
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कहने को बस कहना है, तो बेहतर ये |
अपनी जेब में रख लो अपना बढ़िया है |
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Comment
आज उफ़क तक सरसों देखी, दिल बोला- |
नीली चूनर, पीला लंहगा, बढ़िया है |
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मकसद अपना हँसकर वो बतलाते ये |
पैसा पैसा केवल पैसा, बढ़िया है |
वाह आदरणीय मिथिलेश जी खूबसूरत ग़ज़ल कही, बढियां है । मुबारकबाद ....
आदरणीय मिथिलेश भाई , खूब बढ़िया गज़ल हुई है , सभी अशआर बढिया हैं , दिली मुबारक बाद आपको गज़ल के लिये ॥
ग़ज़ल सुनाई तुमने बढिया , बढ़िया है
क्या बोलूँ मै हर इक मिसरा , बढ़िया है --- पुनः बधाइयाँ
हा हा हा बढ़िया है .... और मैं जेब में नहीं रखूँगा ... वाकई बढ़िया है .... मजेदार भी प्रवाहपूर्ण भी .... हार्दिक बधाई
अद्भुत अनुपम अजगुत रसमय क्या कहने
गजल कही वामनकर जी ने बढ़िया है ------------------ सादर
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