221 2121 1221 212
उनके खजाने जैसे ही वोटों से भर गये नकली लगे हुए वो मुखौटे उतर गये
आकाश में उड़े न उड़े फिक्र क्या उन्हें ,जाते हुए गरीब के वो पर कुतर गए
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Comment
आ० श्री सुनील जी ,आपको ये अशआर पसंद आये दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया .
आ० गिरिराज जी,आपको ग़ज़ल अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार आपका
आदरणीया राजेश जी , अच्छी गज़ल कही है , दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।
अपने मकाँ बना के बड़ा खुश हुआ बशर,
परवाह उसको है कहाँ कितने शज़र गए. -- इस शेर के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
आपके कहने के अनुसार ग़ज़ल को एडिट किया है आ० मनन जी तथा अनुस्वार भी हटा दिए हैं | इस्स्लाह के लिए मिथिलेश भैया ,आ० रवि शुक्ल जी व् आपका तहे दिल से शुक्रिया.
हाँ,मायूस ही रहना चाहिए मायूसं नहीं,मात्रा भी बाधित हो रही है और शुद्धि भी ??? आ० मनन कुमार जी ,मैं आपके कहने का आशय नहीं समझ पाई मायूस में कहाँ मात्रा बाधित हो रही है मायूस को २२१ में ही बाँधा है कृपया बताएं शुद्धि में कहाँ गड़बड़ है ?? इसे पोस्ट को करने में कुछ तकनीकि गड़बड़ हुई कहीं कहीं बिंदु खुद ब खुद लग गए अशआर भी आगे पीछे हो गए आपका मतलब बिंदु से है अर्थात मायूसम कोई शब्द ही नहीं होता उसे लेने का क्या लोजिक होगा इतना तो आप भी समझ सकते हैं आप इसे टंकण त्रुटी भी कह सकते थे | दूसरी बात अखर गए इसमें क्या अर्थ बाधा आपको प्रतीत हुई मैं नहीं समझ पा रही हूँ ---उसकी खुली जुबान तो क्यूँ कर अखर गए----अर्थात उनका बोलना क्यूँ बुरा लगा ? आपका बहुत- बहुत शुक्रिया
आ० डॉ ० आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल के अशआर पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया आपका तहे दिल से बहुत- बहुत आभार |
आ० रवि शुक्ल जी ,आपकी शेर दर शेर समीक्षा से उत्साहित हूँ आपकी इस्स्लाह भी स्वागत योग्य है ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ..दरअसल ये एक फिलबदीह ग़ज़ल थी जो सिर्फ दर पंद्रह मिनट में लिखी थी जो जैसी की तैसी ही पोस्ट कर दी अपनी मूल प्रति में अवश्य संशोधन कर लूँगी बहुत- बहुत आभार |
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