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उनके खजाने जैसे ही वोटों से भर गये नकली लगे हुए वो मुखौटे उतर गये
आकाश में उड़े न उड़े फिक्र क्या उन्हें ,जाते हुए गरीब के वो पर कुतर गए
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Comment
मिथिलेश भैया ,ग़ज़ल पर आपकी पहली प्रतिक्रिया से उत्साहित हूँ तथा आश्वस्त भी हुई की अशआर अपना प्रभाव छोड़ पा रहे हैं आपकी इस्स्लाह भी स्वागत योग्य है दिल से बहुत- बहुत आभार आपका|
अपने मकाँ बना के बड़ा खुश हुआ बशर,
परवाह उसको है कहाँ कितने शज़र गए.
रंगीनियाँ बिखेरती कातिल अदा से वो सैय्याद की गिरफ्त में सारे हुनर गए. इन दो शेरो के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें सादर
आदरणीया राज जी ..हर शेर बहुत पसंद आया ..इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
अाइरणीया राजेश जी सादर प्रणाम
सुन्दर ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें
राजनीति के सच को बयान करता मतला बहुत खूब
उनके खजाने जैसे ही वोटों से भर गये
नकली चढ़े वो झट से मखौटे उतर गये नकली लगे हुए थे मुखौटे उतर गये
उनका उभर गया है जमीर आईने में क्या,
जो आज लोग अक्स से अपने ही डर गए. इस शेर के सानी मे आज और लोग का वज्न एक ही है आज पहले लिखने से प्रवाह थोड़ा बाधित हो रहा है इसको ऐसे भी पढ़ सकते है ..... जो लोग आज अक्स से अपने ही डर गए.
हर सिम्त दर्द-ओ-गम का समंदर उमड पड़ा,
माकूल हसरतों के जजीरे बिखर गए वाह वाह क्या बात है एक तो हसरते उपर से माकूल क्या बात है और उस पर सितम ये कि हसरतो के भी जजीरे बिखर गये मायूसी का अच्छा चित्रण है
गलती करें तो सोचते किसका पड़ा असर
,बच्चे हमारे अपने हैं तो अपने पर गए सुन्दर शेर है किसी की तरफ एक उंगली उठाने पर बाकी की तीन तो हमारी तरफ ही होती है मुहावरे का सुन्दर प्रयोग है ( अपने पर गये )
रंगीनियाँ बिखेरती कातिल अदा से वो
सैय्याद की गिरफ्त में सारे हुनर गए. हा हा हा होशियारी भी जरूरी है चमन में आजकल । खैर परिहास अलग बात है आदरणीया ग़ज़ल पर शेर दर शेर दिली दाद कुबूल करें । सादर
आदरणीया राजेश दीदी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. मतला लाजवाब बना है. गरीब के पर, अक्स से डर, जजीरे बिखर, जुबान अखर और शज़र वाले शेर बहुत पसंद आये. एक निवेदन //जब जीस्त में मिली कई ठोकर सुधर गए// इस मिसरे में जीस्त की बजाय जिंदगी रखकर मिसरा बने तो आनंद आ जाये. इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए. सादर नमन
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