212---212---212---212 |
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मखमली चाँदनी रोज आया करो |
पर सितारों से आमद छुपाया करो |
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तितलियों ने लिए है नए पैरहन |
ऐ हवा ढंग से गुदगुदाया करो |
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सेलफोनो से आती हुई ये सदा |
हर शज़र को बुला कर सुनाया करो |
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राधिका-सी जमीं रक्स करने लगे |
बादलो बांसुरी तो बजाया करो |
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औज की धडकनें थम न जाएँ कहीं |
यक-बयक नौ कँवल मत खिलाया करो |
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इन गुलाबों पे फिर से जवानी चढ़े |
इस तरह बाग़ में फाग गाया करो |
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एक दीवान से किस कदर दब गई |
रैक को इस तरह मत सताया करो |
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बारिशों में धुली पत्तियां कह रहीं |
गुनगुनी धूप को भी बुलाया करो |
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कब चले, कब रुके, ये हमें सिग्नलो |
फलसफा जिंदगी का सिखाया करो |
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लॉन के छोर पर बैठ कर रो रही |
ओंस को धूप से मत भिड़ाया करो |
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Comment
आदरणीय सतविंदर जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल पर आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. सराहना तथा उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय मिथलेश जी, शानदार व खुबसूरत ग़ज़ल कही है आपने हम देर से इस ग़ज़ल तक आये पर आये एक शेर जो हर किसी की जुबान पर है हमें भी पंसद आया
तितलियों ने लिए है नए पैरहन
ऐ हवा ढंग से गुदगुदाया करो बहुत खूब वाह
बारिशों में धुली पत्तियां कह रहीं
गुनगुनी धूप को भी बुलाया करो बारिश में नहाई हुई पत्तिया गुनगनी धूप क्या शानदार चित्र है और इसी भाव का आखिरी शेर।
लॉन के छोर पर बैठ कर रो रही
ओंस को धूप से मत भिड़ाया करो लॉन के छाेर पर दृष्टि , ओस और धूप का परस्पर विरोधी स्वभाव बहुत खूब चित्रण किया है
पूरी ग़ज़ल के लिये दिली दाद स्वीकार करें । सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
तितलियों ने लिए है नए पैरहन |
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ऐ हवा ढंग से गुदगुदाया करो
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आदरणीया राजेश दीदी, आपका स्नेह मुझे सदैव प्रेरित करता है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर नमन
आदरणीय सौरभ सर, ग़ज़ल पर आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. सराहना, मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. आपके मार्गदर्शन अनुसार त्रुटी सुधारता हूँ. सादर नमन
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही मिथिलेश भैया शेर दर शेर दाद कुबूलिये |
तितलियों ने लिए है नए पैरहन |
ऐ हवा ढंग से गुदगुदाया करो ...वाह वाह |
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वाह ! बवाल कर रही है आपकी ये प्रस्तुति ! बहुत खूब !
हृदयतल से बधाई स्वीकार करें
सम्बोधन की संज्ञाओं में अनुस्वार न लगाया करें. बादलो बाँसुरी सुनाया करो उचित होगा. इसी तरह सिग्नलों न हो कर सिग्नलो होगा. लेकिन एक जगह अनुस्वार छूट भी गया है. जैसे, पत्तियां कह रही ! यहाँ रहीं होगा न ? ये सब तो व्याकरण सम्मत बातें हुईं. बाकी, ग़ज़ल ? सुबहान अल्लाह !
:-))
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