न जग तेरा है .....
न जग तेरा है न मेरा है
बस दो साँसों का डेरा है
है पल भर की बस भोर यहां
पल अगला घोर अँधेरा है
न जग तेरा है ....
मैं पथ का कोई शूल कहूँ
या जीवन कोई भूल कहूँ
इक पल यहाँ पर है उत्सव
पल दूजा दुख का डेरा है
न जग तेरा है ....
स्वर प्रेम नीड को ढूंढ रहे
दृग पीर नीर में मूँद रहे
है नीरवता हर ओर यहां
विष सेज पे सुप्त उजेरा है
न जग तेरा है ....
अभिलाष हृदय की तृषित रही
और श्वास देह की मौन हुई
जीवन के पथ का मरघट ही
बस अंतिम रैन बसेरा है
न जग तेरा है .....
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Ajay Kumar Sharma जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
सुशील सरना साहब दिल को छू जाने वाली मार्मिक रचना के लिये हृदय से बधाई देता हूँ। स्वीकार करें।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी!बेहद मार्मिक और सार गर्भित रचना!
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