टीस.....
चलो न
कुछ और बात करते हैं
अपनी अपनी टीस से
मुलाक़ात करते हैं
नेह से देह की थकान
तो अधरों से तृप्ति हारी है
सच कहूँ तो
बीती हुई रात की
चुपके से हुई बात
कुछ तेरी पलक पर
तो कुछ मेरी पलक पर
अभी तक भारी है
जूही के फूलों में लिपटे
वो स्वप्निल लम्हे
अस्त व्यस्त से सलवटों में
अपनी गंध से
अलौकिक अनुभूति की
व्याख्या करते प्रतीत होते हैं
निर्वसन शरीर के उजास की चांदनी
एकान्तता से लिपट
स्मृति की उर्वरक धरा को
दीप की मद्धिम लौ में घटित
मधु पलों को
अपने शीतल प्रकाश से
सदा पल्लवित करती है
देखो
तुम्हारी हथेली पर
रेशमी अहसासों की चादर लपेटे
नेत्रों के घरोंदों को छोड़
एक नम लम्हा
इक मीठी टीस लिए आ बैठा है
जो दृग दूरी को मिटाता है
इस टीस में
कितनी मिठास होती है
तृप्ती के घन से
सदा अतृप्ति की बरसात होती है
सच
इस टीस के बहाने
तेरी और मेरी
हर लम्हा मुलाक़ात होती है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया DIGVIJAY जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।इसे अतुकांत की श्रेणी में रखा जाएगा।
बेहतरीन कविता आदरणीय सुशील जी बधाई आपको...वैसे इसे कविता के भीतर ही रखेंगे न...जानकारी का अभाव हैं । सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है. हार्दिक बधाई
आदरणीय Samar kabeer जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार।
आदरणीया कांता रॉय जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
तृप्ती के घन से
सदा अतृप्ति की बरसात होती है
सच
इस टीस के बहाने
तेरी और मेरी
हर लम्हा मुलाक़ात होती है------वाह !!! अप्रितम सौंदर्य लिए बहुत ही नर्म सी रचना। ढेरों बधाई आपको आदरणीय सुशील सरना जी।
आदरणीय तेज वीर सिंह जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी!बहुत शानदार व्याख्या की है टीस की!बेहतरीन विश्लेषण टीस का!टीस की अनुभुति की पीडा और टीस का रोमांच सब कुछ लिख डाला!पुनः बधाई!
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