साये....
रहने दो
तुम सायों की खामोशी क्या जानो
तुम सिर्फ खोखले अहसासों के
सूखे शज़र हो
साये का दर्द तो सिर्फ
ज़मीन सहती है
हर जिस्मानी खरोंच को
खामोशी से पी जाती है
उफ़ नहीं करती
रेज़ा रेज़ा बिखरती
तारीक में सिमट जाती है
जब कोई तन्हा शब
किसी परिंदे की तरह
पेड़ पर फड़फड़ाती है
बेतरतीब से सलवटों में
तब वफा भी कराहती है
गुजरे लम्हों के साये
तमाम उम्र
जीने की सजा दे जाते हैं
ज़िस्म की कश्कोल में
हर सांस
इक गदाई सी लगती है
हया की झीनी सी चादर पर
उसकी छुअन
एक बेहयाई से लगती है
साया खामोश रहता है
मगर हर लम्स में इक
साये की स्याही लगती है
कश्कोल=भिक्षा-पात्र ,गदाई = फ़क़ीरी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय vijay nikore जी प्रस्तुति को आत्मीय सम्मान देने के लिए आपका ह्रदयतल से आभारी हूँ।
बहुत ही आनन्द आया आपकी रचना पढ़ कर।
हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।
आदरणीया राजेश कुमारी जी रचना में निहित अहसासों को आपने इतना मान दिया इसके लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
बहुत शानदार रचना आ० सुशील सरना जी ,दिल से बधाई लीजिये
आदरणीया pratibha pande जी प्रस्तुति में निहित भावों सम्मान देने के लिए आपका ह्रदयतल से आभारी हूँ।
गुजरे लम्हों के साये
तमाम उम्र
जीने की सजा दे जाते हैं
ज़िस्म की कश्कोल
हर सांस
इक गदाई सी लगती है ......आपकी रचनाओं की गहराइयों में उतरते हुए हमेशा नए एहसासों से मिलते हैं हार्दिक बधाई आपको इस रचना कर्म के लिए आदरणीय सुशील जी
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीया jyotsna Kapil जी प्रस्तुति में निहित भावों सम्मान देने के लिए आपका ह्रदयतल से आभारी हूँ।
आदरणीय Samar kabeer जी प्रस्तुति को आत्मीय सम्मान देने के लिए आपका ह्रदयतल से आभारी हूँ।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरनाजी!बेहतरीन प्रस्तुति!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online