For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लड़ाई मज़हबी फिर से छिड़ी है (ग़ज़ल)

1222 1222 122

कभी है ग़म,कभी थोड़ी ख़ुशी है..
इसी का नाम ही तो ज़िन्दगी है..

हमें सौगात चाहत की मिली है..
ये पलकों पे जो थोड़ी-सी नमी है..

मुखौटे हर तरफ़ दिखते हैं मुझको,
कहीं दिखता नहीं क्यों आदमी है..?

फ़िज़ा में गूँजता हर ओर मातम,
कि फिर ससुराल में बेटी जली है..

सभी मौजूद हों महफ़िल में,फिर भी,
बहुत खलती मुझे तेरी कमी है..

दहल जाए न फिर इंसानियत 'जय',
लड़ाई मज़हबी फिर से छिड़ी है..
=====================

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 10:22pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी, हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ आपके प्रति।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 23, 2016 at 1:49pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है जयनित साहब, दाद कुबूल कीजिए।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 26, 2015 at 2:10pm

संशोधन के बाद क्या लाजबाब शेर हुआ है ..बहुत सुन्दर ग़ज़ल शेर दर शेर दाद कुबूलें जयनित जी 

Comment by Ravi Shukla on November 26, 2015 at 1:26pm

आदरणीय जयनित जी मेरे कहे को मान देने के लिये आभार ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on November 26, 2015 at 1:05pm

आदरणीय नादिर ख़ान जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई,इसके लिए मेरा दिल से धन्यवाद आपको। लगता है मेरा लिखना सार्थक हुआ..

Comment by नादिर ख़ान on November 26, 2015 at 10:56am

दहल जाए न फिर इंसानियत 'जय',
लड़ाई मज़हबी फिर से छिड़ी है.

सही कहा आदरनीय जयनित जी मज़हब की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुक्सान इंसानियत को ही होता है।  उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद स्वीकार करें  ... 

Comment by जयनित कुमार मेहता on November 25, 2015 at 4:43pm

आदरणीय रवि जी, कहन की त्रुटियों पर ध्यान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका। मैं ग़ज़ल में संशोधन कर रहा हूँ..

Comment by Ravi Shukla on November 25, 2015 at 4:14pm
आदरणीय जयनित जी । सुन्दर प्रवाह पूर्ण ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारक बाद क़ुबूल करे । पिया के घर किसी बेटी के जाने से हर और मातम फैल जाने के कथन से विनम्रता पूर्वक मैं असहमत हूँ । पिता अपनी पुत्री को विदा करता है दुखी होना स्वाभाविक है किन्तु उसका एक पुनीत कर्तव्य भी है ये ।इसमें मातम की मौजूदगी थोड़ी असहज लगी । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
yesterday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service