आस्तीन मे छुपे सांप
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किसी हद तक सच भी है
आपका कहना
चलो मान लिया
आस्तीन मे छुपे सांप
हमारी रक्षा के लिये होते हैं
और हमे काट के या डस के अभ्यास करते हैं
ताकि हमारा कोई दुश्मन हमपे वार करें
तो ,
हमें ही काट के किया गया अभ्यास काम आये
अब सोचिये न
क्या दुशमनी हो सकती है हमारे से ?
उस चूहे की
जो हमारे ही घर मे रह के
हमारे ही अन्न जल मे पलके बड़ा होता है
मोटा होता है
और हमारे ही कपड़ों को कुतर कुतर के
हमें , अकारण नुक्सान पहुँचाता है
कोई दुश्मनी नहीं , है न !
वो तो बस , अपनें दाँत पैने करता है बेचारा
ताकि , हमारे दुश्मनों के साथ कभी लड़ सके
परास्त कर सके उनको
ये बात और , कि
जब वक़्त आता है सच में
वो अपने बिल मे छुप जाता है
फिर भी हमे तो मान ही लेना चाहिये , क्यों भाई साब ?
चूहा भी स्वामी भक्त होता है
कुत्तों की तरह ,
सच कहते हैं आप ।
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आ० अनुज , आपका पैना चिंतन प्रभावित करता है , इस विधा पर भी आप की जय हो रही है .
आदरणीय गिरिराज जी अतुकांत में आपके भाव शानदार तरीके से सामने आते है धीरे धीरे गिरह खोलते हुए बात को कह जाती है आपकी अतुकांत कविता । छंदो के प्रति आग्रही होने के उपरांत भी इन दिनों कई ऐसी कविताएं आई है पढनें में जो अतुकांत के प्रति हमारी असहिष्णुता पर चोट करती चलती है आपकी कविता भी इसी तरह की है सीधे सीधे समझ में आने वाली आदरणीय गोपाल नारायण जी की कबीर पर रचित कविता भी इसी तरह की है । बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें । सादर
आदरणीय भंडारी जी आप गजब का व्यंग्य रच सकते हैं। विधा बदल कर लेख पर आ जाएँ तो बहुत बढ़िया लेख दे पाएँगे , ऐसा मेरा विश्वास है
हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी!बेहतरीन व्यंग्य! बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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