For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरे ये क्या किया आपने, वक्त ज़रूरत के लिए एक ज़मीन थी वो भी बेच दी कल को बेटी की शादी करनी है और रिटायरमेंट के बाद के लिए कुछ सोचा है । एक सहारा था वह भी चला गया ।
अरे भाग्यवान, बेटी के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन के लिए ही तो बेचा है, और बुढ़ापे का सहारा ये ज़मीन जायजाद नहीं हमारे बच्चे हैं और उनकी तरबियत की जिम्मेदारी हमारी है । रही बात शादी की तो, न लड़की की शादी में दहेज़ देंगे, न लड़के की शादी में दहेज़ लेंगे
हिसाब बराबर है, न लेना एक न देना दो ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 817

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on January 1, 2016 at 5:45pm

आदरनीय सौरभ सर बहुमूल्य ज्ञान वर्धक टिप्पणी के लिए आभार, समयाभाव और चिंतन में कमि (विषय को गहराई से न सोचना ) की वजह से कथ्य में सुदृणता नहीं आ रही  है | आगे इस बात का ध्यान रखूँगा बहुत आभार आपका। ..... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 17, 2015 at 12:42am

नादिर भाई, आपकी यह लघुकथा भावनात्मक तौर पर अच्छी है लेकिन कथ्य को और कसावट दी जानी चाहिए. ऐसे संवादों से पात्रों की बुद्धिमानी और उनकी जागरुकता तो झलकती है लेकिन कथात्मकता पीछे छूट जाती है. आप कथ्य और उसके प्रस्तुतीकरण में थोड़ी नाटकीयता समाविष्ट करें, जो कि कथाओं का अहम भाग हुआ करता है, तो यह लघुकथा अवश्य ही स्मरणीय होगी. यानी, लघुकथा प्रासंगिक हो उठेगी. 

विश्वास है मेरी टिप्पणी में आप समालोचना और सकारात्मकता देखेंगे.

शुभेच्छाएँ 

Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 3:15pm

अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय नादिर खान जी।

Comment by Rahila on December 5, 2015 at 1:33pm
बहुत खूब आदरणीय नादिर खान साहब !कुछ ऐसा ही होते देखा है तो आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं । बहुत उम्दा सोच ,सार्थक लेखन । बहुत बधाई आपको । सादर ।
Comment by नादिर ख़ान on December 4, 2015 at 4:21pm

आदरणीय सुनील जी रचना पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक  हुआ । 

Comment by Sushil Sarna on December 3, 2015 at 7:45pm

आदरणीय जी समाज को दहेज़ विरोधी सन्देश देती इस  सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें। 

Comment by नादिर ख़ान on December 3, 2015 at 6:26pm

आदरणीय उस्मानी साहब आपको रचना पसंद आयी, रचना कर्म सफल हुआ  बहुत बहुत शुक्रिया आपका .... 

Comment by नादिर ख़ान on December 3, 2015 at 6:24pm

आदरणीय लक्ष्मण साहब  हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया|

स्नेह बनाये रखें |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 3, 2015 at 12:59pm
"तरबियत अहम है" और "दहेज़ लेन-देन प्रथा त्याज्य है" - ये दो अहम संदेश वाहक बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद आपको जनाब नादिर ख़ान साहब। आपने कहा कि यह आपकी दूसरी लघुकथा है, पर हमें लगा कि आप अभ्यस्त लघु कथाकार हैं। शुरू से अंत तक प्रवाह पूर्ण प्रस्तुति है आपकी जन-जागरूकता का संदेश देती हुई।
Comment by नादिर ख़ान on December 3, 2015 at 12:54pm

कृपया ज़मीन जायजाद को ज़मीन जायदाद  पढ़ें । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service