जीप में बैठते ही मन प्रसन्नता से भर रहा था। देश में वर्षों बाद वापसी , बार -बार हाथों में पकडे पेपर को पढ़ रही थी , पढ़ क्या रही थी , बार -बार निहार रही थी। सरकार ने पिछले दस साल से इस प्रोजेक्ट पर काम करके रामपुरा जैसी बंज़र भूमि को हरा -भरा बना दिया है।गाँव की फोटो कितनी सुन्दर है , मन आल्हादित हो रहा था। उसका गाँव मॉडल गाँव के तौर पर विदेशों में कौतुहल का विषय जो है ! बस अब कुछ देर में गाँव पहुँचने ही वाली थी। दशकों पहले सुखा और अकाल ने उसके पिता समेत गाँव वालो को विवश कर दिया था गावं छोड़ने के लिए।
"अरे , ये कहाँ , चक्कर पर चक्कर लगा रहे है आप ,गाँव की तरफ गाडी घुमाइए। " -- मीलों निकल आने के बाद भी दूर -दूर तक सुखा , ह्रदय बैठा जा रहा था।
" मैडम आप के बताये रास्ते से ही जा रहे है , मुझे तो यहां आस -पास बस्ती दिखाई ही नहीं दे रही । सन्नाटा ही सन्नाटा है , इंसानो की तो क्या , लगता है कि चील -कौए की भी यहां बस्ती नहीं है। "
" क्या ! सामने जरा और आगे चलो , पेपर में तो बहुत तरक्की बताई है गाँव की , इसलिए तो हम गावं में बसने की चाहत लिए विदेश में सब कुछ बेच आये है ! "
"और कितना आगे लेकर जाएँगी , गाड़ी में पेट्रोल भी सीमित है "
" रुको गूगल सर्च करती हूँ " - कहते हुए लैपटॉप निकाली , ओह ! नेटवर्क ही नहीं ......... , बेचैन होकर फिर से गाँव को पेपर में तलाशने लगी।
" मैडम , कागज़ का गाँव था लगता है उड़ गया "
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
बहुत ही खूबसूरत भावों को समेटे कथा हार्दिक बधाई आदरणीय Kanta Roy जी
आदरणिया कान्ता जी,
सरकारी काम के स्याह चेहरे को आपने दिखाया है जो कुछ साल पहले तक अमुमन हर जगह दिखा करता था. आज जब सोशल मीडीया इतना तेज हो गया है तब इस तरह की बात कम हो सकती है.
सुन्दर भाव के साथ सफ़ल कथा.
सादर.
आदरणीया कांता जी , आज की कागज़ी उन्नति पर बेहतरीन कटाक्ष करती आपकी कथा के लिये हार्दिक बधाई ।
सरकारी और मीडियाई पाखंडो का पर्दाफास करती इस लहुकथा के लिए हार्दिक बधाई ..आ० कान्ता बहन .इस तरह की त्रासदी मेरा सुदूरवर्ती गाव भी भोग चूका है .जहाँ सरकारी कागजों में १९७२ में ही विद्युतीकरण हो गया था लेकिन वास्तव में बिजली पहुंची २००५ में .अन्य सुविधाएँ तो आब भी गायब हैं l
आज की प्रशासन व्यवस्था उनकी नकली कलई खोलने वाली शानदार कटाक्ष करती हुई लघु कथा बहुत बढ़िया आ० कांता जी हार्दिक बधाई आपको
कथा पर सार्थक भावाव्यक्ति के लिए आभार आदरणीय मोहन जी।
उत्साह वर्धन के लिए तहेदिल शुक्रिया आदरणीय दिग्विजय जी।
कथा पसंदगी के लिए आभार आदरणीया ज्योत्सना जी।
कथा पसंदगी के लिए आभार आदरणीया राहिला जी।
दूर दराज के नहीं शहर के साथ लगते गाँव भी कागज़ पे छपे गाँव है, असलियत मैं इन गांवों की हालत दयनीय है , आदरनीया कांता जी इस लघुकथा ने इस विषय को खूब अच्छी तरह निभाया है -बधाई हो
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