For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरगिट (लघुकथा )राहिला

"ओह, श्रीमती रोहन आप वाकई बहुत भाग्यशाली हैं । कि आप को रोहन जैसा हंसमुख ,जिंदादिल,स्वतंत्र विचारधारा का धनी पति मिला ।ऑफिस की तो जान है,मजाल जो किसी के चेहरे पर उसके रहते उदासी छा जाये।" रात के खाने पर आमंत्रित उनकी महिला मित्र काफ़ी देर से उनकी शान में कसीदे पढ़े जा रही थी ।
"वैसे बुरा ना मानियेगा, अगर रोहन की शादी ना हुई होती तो उसे किसीभी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देती । आखिर ऐसे इंसान की पत्नी होना अपने आप में गर्व की बात है ।सच कह रही हूं ना! " वो अब मेरी राय जानने के लिये उत्सुकतावश मेरा मुंह ताक रही थी ।
"हां..सही कह रही हो । मैं भी काफ़ी लंबे समय तक उनके साथ काम कर चुकी हूं । और शादी से पहले मेरा भी यही ख्याल था । "रीमा!साड़ी के पल्लू से घरेलू हिंसा के चिन्ह छिपा एक गहरी सांस छोड़,उठते हुये बोली ।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 823

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on February 24, 2016 at 11:33am
बहुत आभार आदरणीय सर जी । सादर धन्यवाद

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:42am

बहुत खूबसूरत लघुकथा कही है, सही फरमाया है कि हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होतीI बहुत बहुत बधाई स्वीकर करें राहिला जीI   

Comment by Rahila on December 28, 2015 at 10:33am
हार्दिक आभार आदरणीय सतविन्दर जी! बहुत खुशी हुई कि रचना आपका ध्यान आकर्षित कर पाई । बहुत शुक्रिया तारीफ का । सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2015 at 8:30am
वह्ह्ह्ह्ह्।बेहतरीन भावपूर्ण रचना।हार्दिक बधाई
Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:44pm
आदरणीय डा.आशुतोष सर जी!जीवन में जो चीज बहुत करीब से देखने को मिलती है तो विषय का चुनाव अक्सर उम्दा हो जाता है । दुनिया दोगले लोगों से भरी पड़ी है । आपने रचना का मर्म समझा ,बहुत आभार आपका ।सादर
Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:36pm
आदरणीय सुशील सर जी !बहुत शुक्रिया रचना को वक्त देने और समीक्षा करने के लिये ।बहुत आभार । सादर
Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:33pm
बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता दी!आपने रचना को अपना कीमती वक्त दिया, सराहा मेरा लिखना सफल हुआ । सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2015 at 9:31pm

आदरणीया राहिला जी ..बहुत सुंदर लघु कथा ..सच में दूर के ढोल बड़े सुहाबने लगते हैं आदमी बाहर जब समाज में मिलता है तो बनावटी हो जाता है ..अच्छा बिषय चुना है ..सार्थक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सादर

Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:30pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी! आपको शीर्षक प्रभावशाली लगा, मेरे लिये ये ही बहुत है । आपकी टिप्पणी मेरे लिये बहुत मायने रखती है । दिल से शुक्रिया आपका । सादर
Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:27pm
प्रिय जानकी दी आपके बगैर तो रचना की सार्थकता पर ही शक होने लगता है । आपकी उपस्थिति एहसास कराती है कि लिखना सफल हुआ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"किसको लगता है भला, कुदरत का यह रूप। मगर छाँव का मोल क्या, जब ना होगी धूप।। ऊपर तपता सूर्य है, नीचे…"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह अशोक भाई। बहुत ही उत्तम दोहे। // वृक्ष    नहीं    छाया …"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पीछा करते  हर  तरफ,  सदा  धूप के पाँव।   जल की प्यासी…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"     दोहे * मेघाच्छादित नभ हुआ, पर मन बहुत अधीर। उमस  सहन  होती …"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service