कितना अच्छा हो ....
अभी-अभी
हवाओं के थपेड़ों से बजते
वातायन के पटों ने
तिमिर में सुप्त चुप्पी से
चुपके से कुछ कहा //
अभी-अभी
रिमझिम फुहारों ने
चंचल स्मृति की
असीम गहराईयों संग
अंगड़ाई ली //
अभी-अभी
एक रूठा पल
घोर निस्तब्धता को
अपनी निःशब्द श्वासों से
जीवित कर गया //
अभी-अभी
एक तारा टूट कर
किसी की झोली
सपनों से भर गया //
अभी-अभी से लिपट
कभी पलक में
ख्वाब सो जाते है
कभी पल अपने
कभी पराये हो जाते हैं
कभी नयनघटोँ के सागर
काजल संग
तूफ़ान मचाते हैं //
सच ! अभी-अभी का ये विस्तृत आकाश
मानव मन के अवचेतन में
पल पल अंकुरित होती आशाओं का
पावन स्थल ही तो है
जो अपूर्ण संभावनाओं की
उलझी ग्रंथियों में सकारात्मक दृष्टि की
कोपलें प्रस्फुटित कर
जीवन को नया रंग दे जाता है
कितना अच्छा हो अगर
ये अभी -अभी के स्वर्णिम पल
कभी- कभी न हों //
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति को आपके आत्मीय स्नेह ने जो अपनापन दिया है उसके लिए दिल से आभार।
आदरनीय सुशील सरना जी , आपकी बेहतरीन भाव पूर्ण कविता के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय Dr. Rakesh Joshi jee सृजन को बल देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना जी,
बहुत सुन्दर रचना है आपकी.बहुत-बहुत बधाई आपको.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी
आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी प्रस्तुति को मान देने का हार्दिक आभार।
अभी-अभी
एक तारा टूट कर
किसी की झोली
सपनों से भर गया //......बहुत खूबसूरत भाव हैं आदरणीय ,ऐसे ही रचनाकर्म से रूबरू करवाते रहिये' कभी कभी' नहीं हमेशा ,बधाई इस रचना पर
आदरणीय Samar kabee सृजन को बल देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सतविंदर कुमार jee आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
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