शिकन भरा लिबास......
ये सुर्ख सी आँखें
बिखरी हुई जुल्फें
शिकन भरा लिबास देख
आज अपने ही दर्पण में
मैं लुटी नज़र आती हूँ //
हर शब की तरह
जो आज भी
इस जिस्म को रूहानी ज़ख़्म दे गया
फिर उसी के साथ बेवजह
जीने की ज़िद कर जाती हूँ //
जानती हूँ
वो फिर कुछ पल के लिए आएगा
अपने दिए ज़ख्मों पे
झूठे वादों का मरहम लगाएगा
मैं उसकी बातों में आजाऊंगी
भूल जाऊँगी दर्द ज़ख्मों का
और अपना अस्तित्व भी भूल जाऊँगी //
झूठा ही सही
फिर भी उस पल के लिए
उस खारे सागर की लहर बन
उसमें समा जाऊँगी //
फ़रेब ही सही
पर उस फ़रेब के लिए
मैं तमाम शब्
उसके इंतज़ार में सहर तलक
इक चराग जलाऊँगी //
लूट जाऊँगी मगर
अपनी क़बा की शिकन
कभी न मिटाऊँगी//
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय उस्मानी साहिब प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील सरना भाई , बहुत सुन्दर !! एक और अच्छी कविता के लिये आपको हादिक बधाई ।
आदरणीय उस्मानी साहिब प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार।
आदरणीय समीर कबीर जी प्रस्तुति को इतना मान देने का हार्दिक आभार।
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