दिल के अहसासों को ...
मैं नहीं जानता
वो किसकी दुआ थी
मैं नहीं जानता
वो किसकी सदा थी
मैं तो ये भी नहीं जानता
कब उसके लम्स
मेरे ज़िस्म पर
अपनी पहचान छोड़ गए
शायद वो रेशमी इज़हार
खामोशी की कबा में ग़ुम थे
कब साँझ ने
तारीक का लिबास पहन लिया
बस ! न जाने कब
चुपके से इक ख्याल
हकीकत बन गया
न पलक कुछ बोली
न लबों पे कोई जुंबिश हुई
दिल के अहसासों को
इक दूजे की हथेलियों ने
इक दूजे से लिपट कर
ज़िंदगी दे दी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी इस नाचीज़ की हौसला अफ़ज़ाई करने का तहे दिल से शुक्रिया।
बहुत खूब , आदरणीय खूब मंज़र कशी हुई है , बधाई आपको
आदरणीय समर कबीर जी इस नाचीज़ की हौसला अफ़ज़ाई करने का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय ajay sharma जी प्रस्तुति पर मन मुदित करती आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
मैं तो ये भी नहीं जानता
कब उसके लम्स
मेरे ज़िस्म पर
अपनी पहचान छोड़ गए ..........wah wah wah
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