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दिल के अहसासों को ...

दिल के अहसासों को ...

मैं नहीं जानता
वो किसकी दुआ थी
मैं नहीं जानता
वो किसकी सदा थी
मैं तो ये भी नहीं जानता
कब उसके लम्स
मेरे ज़िस्म पर
अपनी पहचान छोड़ गए
शायद वो रेशमी इज़हार
खामोशी की कबा में ग़ुम थे
कब साँझ ने
तारीक का लिबास पहन लिया
बस ! न जाने कब
चुपके से इक ख्याल
हकीकत बन गया
न पलक कुछ बोली
न लबों पे कोई जुंबिश हुई
दिल के अहसासों को
इक दूजे की हथेलियों ने
इक दूजे से लिपट कर
ज़िंदगी दे दी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 12, 2016 at 7:31pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी  जी इस नाचीज़ की हौसला अफ़ज़ाई करने का तहे दिल से शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 3:39pm

बहुत खूब , आदरणीय खूब मंज़र कशी हुई है , बधाई आपको

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2016 at 7:33pm

आदरणीय समर कबीर जी इस नाचीज़ की हौसला अफ़ज़ाई करने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Samar kabeer on January 10, 2016 at 5:16pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,"शायद वो रेशमी इज़हार ख़ामोशी की क़बा में गुम थे"दिल के नाज़ुक एहसासात को कविता में पिरो कर क्या शायरी की है
आपने,आनन्द आगया,इस सुंदर कविता के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें |
Comment by Sushil Sarna on January 10, 2016 at 2:08pm

आदरणीय  ajay sharma   जी प्रस्तुति पर मन मुदित करती आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by ajay sharma on January 8, 2016 at 11:21pm

मैं तो ये भी नहीं जानता 
कब उसके लम्स 
मेरे ज़िस्म पर 
अपनी पहचान छोड़ गए ..........wah wah wah

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