भव्य आॅफिस। उसका पहला साक्षात्कार ...... , घबराहट लाजमी था । इसके बाद दो साक्षात्कार और । पिता नहीं रहे। घर की तंगहाली ,बडी़ होने का फ़र्ज़ ,नौकरी पाना उसकी जरूरत , आगे की पढाई को तिरोहित कर आज निकल आई थी ।
" पहले कभी कोई काम किया है ? "
"जी नहीं , यह मेरी पहली नौकरी होगी । " गरीबी ढीठ बना देती है उसने स्वंय में महसूस किया ।
" हम्म्म ! इस नौकरी को आप क्यों पाना चाहती है ?"
" कुछ करके दिखाना चाहती हूँ , यहाँ मेरे लिए पर्याप्त अवसर है ।" इंटरव्यू के प्रश्नों के उत्तर सीख कर आई थी।
"ओके "
" पद के अनुसार अापके सार्टिफिकेट तो ठीक है ,लेकिन मै आपके निजी बातें , नौकरी पाने की आर्थिक जरूरत के बारे में भी जानना चाहूंगा ,····मैं आपको जनाना चाहता हूँ । " - कहते हुए उन्होंने अपनी कुर्सी जरा आगे सरका ली । एकटक उसे देखते हुए उनके चेहरे के भाव बदल रहे थे।
वह अकचकाई !
क्या देख रहे थे वे ? नौकरी का इससे कोई वास्ता ?
" अपने बारे में सब लिखा है मैंने ,देखिये ···· ? टेबल पर रखे हुए फोल्डर की तरफ इशारा किया उसने।
" हमारी आपकी जोड़ी बनने से ही अच्छा काम कर पाएंगे , मैं आपको जानना चाहता हूँ। "
" जोड़ी ·····मतलब ? वह स्वंय में सिकुड़ने लगी । उनका घूर कर देखना भद्दा और अजीब लगा। उसके गालों और गरदन पर नजरें टिकाये हुए था । उनकी नजरों की छुअन जैसे शरीर पर रेंग रही थी , गंदी कोशिश .... ! नजरें झूका ली उसने । नजर उठा उसे फिर से देखने की हिम्मत नहीं हुई । चुप बैठी रही । इस एहसास ने मन को घिना दिया ।
" आपके पिता क्या करते है ? " - उनके चेहरे पर पिचपिचाती हुई गिलगिली मुस्कान ..... !
वह चौंकी , क्या वह उसकी मनोदशा से खेल रहा है ...?
पूर्णतया मन से सावधान हो , उसकी कुंठित आशा को मुर्छित करने का प्रण मन में कर , जबड़े को भींच , मुट्ठी कसी , सोचा , आज यहाँ से यूँ ही नहीं जायेगी । झटके से उठ ,टेबल से अपना फोल्डर उठा बैग में रखा ,
" मेरे पिता ? वे पुलिस में है , तडाक ! " उसके गालों पर उनके एहसासों को अपने चप्पल से रौंदती त्तक्षण वहाँ से निकल पडीं ।
बाहर आ नोट पेड पर नजर फिरा , दृढ़ता से दुसरे साक्षात्कार पर जाने का पता चेक करने लगी ।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कांता जी , आत्मविश्वास और बहादुरी दोनो आज की अहम ज़रूरत है आज की महिलाओं के लिये , आपके पारेअ के पास दोनो चीज़ें हैं , बहुत सुन्दर ! आपको हार्दिक बधाई कथा के लिये ।
आज की महिलाओं को इतना बोल्ड होने की आवश्यकता आ ही गई है आ० कांता जी, ऐसे में इस तरह के प्रेरणास्पद लेखन का हार्दिक स्वागत एवं बधाई.
आदरणीय कांता रॉय जी आपकी ये लघुकथा वर्तमान दृष्टि के प्रति नारी को सचेत करती है। अपने स्वाभिमान के प्रति सजग इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!सुन्दर सन्देश परक लघुकथा!
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