दकियानूस - ( लघुकथा ) –
मनोहर की मृत्यु को आज तेरह दिन हो गये थे!उसके कर्मों का लेखा जोखा देख कर उसे स्वर्ग में ही एक सीट मिल गयी थी!यमराज़ उसकी डायरी देख बेहद प्रभावित थे!यमराज़ ने मनोहर की पीठ थपथपा कर शाबाशी दे डाली!मनोहर रोमांचित हो गया!यमराज़ का अच्छा मूड देख कर मनोहर ने एक इच्छा ज़ाहिर कर दी,
"आज मेरी तेरहवीं हो रही होगी,आपकी इज़ाज़त हो तो क्या मैं एक बार उस मौके को देख कर आ सकता हूं, थोडी तसल्ली कर लेना चाहता हूं कि कितने ज़ोर शोर से मेरा तेरहवॉ हो रहा है! "!
"देख भाई मनोहर,मुझे भेजने में तो कोई खास दिक्कत नहीं है मगर अब तेरा शरीर तो जला दिया!पृथ्वीलोक में जाने के लिये कोई शरीर तो होना चाहिये"!
"प्रभु,मुझे कौनसा वहां जीमने जाना है,मुझे तो सिर्फ़ वहां का नज़ारा देखना है!किसी भी शरीर में भेज दो"!
यमराज ने पता किया कि मनोहर के अडौस पडौस में कोई आज मरा क्या ! सूचना मिली कि मनोहर के पडौसी शिव चरन का पालतू कुत्ता मरा है !मनोहर उसी के शरीर में जाने को राज़ी हो गया!
मनोहर कुत्ते के शरीर में रात के नौ बजे अपने घर के बाहर खडा था!कोई खास चहल पहल नहीं थी!तेरहवीं जैसा माहौल भी नहीं था!बैठक में उसके तीनों बेटों की आवाज़ें आ रही थीं! कांच के गिलासों के टकराने की भी आवाज़ आ रही थी!शराब जैसी गंध भी आ रही थी!मनोहर शुद्ध शाकाहारी ,धर्म कर्म से चलने वाला प्राणी था!उसके बेटे बिलकुल बिपरीत निकले!
मनोहर की बीवी अपने बेटों को कोस रही थी , “ बाप की तेरहवीं नहीं की,लोग क्या कहेंगे”!
"क्या अम्मा तू फ़िर शुरू हो गयी,तुझे अपनी तेरहवीं करानी हो तो इस टॉपिक पर मुंह बंद रख"!
"मेरे मरने के बाद क्या होगा,कौन जाने"!
"तू भी बापू की तरह दकियानूस होती जा रही है"!
"जाने कहां भटक रही होगी उनकी आत्मा"!
"देख अम्मा , मज़ा खराब मत कर,सारा नशा उतार दिया! ये सारे कर्म कांड कुछ धूर्त लोगों द्वारा चलाया हुआ ढकोसला और चोचलेबाज़ी है,आराम से रोटी खा और खाने दे,मरने के बाद आदमी और कुत्ते में कोई फ़र्क नहीं रहता"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार अदरणीय प्रतिभा पांडे जी!
कथा के मर्म को कसे हुए शिल्प और सशक्त पंच लाइन ने सफलता पूर्वक संप्रेषित किया है ,बधाई इस सार्थक कथा पर आदरणीय तेजवीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय फ़ूल सिंह जी!
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी!
बहुत ही सुन्दर, आप बहुत बहुत बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!लघुकथा पर त्वरित और बेबाक टिप्पणी पर पुनः हार्दिक आभार!
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