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आग की रस्मो-राह पानी से- शिज्जु शकूर

2122 1212 22/112

आग की रस्मो-राह पानी से
खूब निकली ख़बर कहानी से

शहर का शहर जल गया साहिब
बोलिए किसकी मेह्रबानी से

बात कुछ और है, वगरना इश्क़!
वो भी इक मुद्दई-ए-जानी से?

ध्यान मुद्दों से क्यों भटकने लगा
ये न उम्मीद थी जवानी से

दिख रहा है असर उपेक्षा का
रंग धूसर हुआ है धानी से

तेरी बातों के हैं कई मतलब
मा’ने क्या निकले तरज़ुमानी से

मीडिया जैसे चल रही है ‘शकूर’
बस हरे और जाफ़रानी से

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on January 22, 2016 at 9:35pm
आदरणीय शिज्जू जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने । दिली बधाई स्वीकार करें
Comment by SALIM RAZA REWA on January 22, 2016 at 8:04pm
खूबसूरत ग़ज़ल की मुबारकबाद
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 22, 2016 at 5:36pm
ध्यान मुद्दों से क्यों भटकने लगा
ये न उम्मीद थी जवानी से

दिख रहा है असर उपेक्षा का
रंग धूसर हुआ है धानी से

तेरी बातों के हैं कई मतलब
मा’ने क्या निकले तरज़ुमानी से

वाह बहुत ख़ूब आदरणीय सर।

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