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2212 2212 2212 12
बदले भले मौसम कभी मत आप दहलिये
सुलगे हमीं कितना कहें चुपचाप रह लिये।1

बदली हुई रुत देखते जाती रही खुदी
होगी नजर फिर आपकी सोचा उछह लिये।2

सूनी पड़ी है देखिये अपनी जहाँ अभी
आकर यहाँ चुपचाप ही निः शंक टहलिये।3

आधी अधूरी आज तक दिल की लगी रही
अबतक सहे हम हैं बहुत बस आज कह लिये।4

अब तो खिले कुछ फूल हैं फिर आपकी नजर
मसले गये हर बार सहते खार रह लिये।5

इतरा रहे कितना अभी गेंदा गुलाब हैं
छितरा रहे कैसी छटा लहकार डहलिये!6

मचली धरा है माँगती थोड़ा गुमान ही
रस्ते चले अपना समझ यूँ आज शह लिये।7

बहने लगी जब नम हवा रस की खुमार -सी
सब भूल कर अपनी घुटन हम साथ बह लिये।8

बेघर अरे कितना बड़ा लगते कभी- कभी
दिल से छिटक भोली नजर सरकार रह लिये।9

तब थी चली जो बात अब नजरें सँवारती
पढ़ते रहे हम तो अभी चुप आप रह लिये।10

पसरा घना तम मौन है दिल देहरी अभी
दहके रहे हम ही कभी क्यूँ आप ढह लिये।11
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on January 31, 2016 at 8:37am
आदरणीय मिथिलेश जी,आभार आपका।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 27, 2016 at 11:58pm

आदरणीया मनन कुमार सिंह जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति, हार्दिक बधाई 

Comment by Manan Kumar singh on January 26, 2016 at 9:15am
आदरणीय तेजवीर जी,आभार आपका।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 25, 2016 at 6:21pm

हार्दिक बधाई आदरणीया मनन कुमार सिंह जी!बेहतरीन गज़ल!

Comment by Manan Kumar singh on January 25, 2016 at 6:11pm
आदरणीय समर जी,आदाब आपको।
Comment by Samar kabeer on January 25, 2016 at 2:42pm
जनाब मनन कुमार जी आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई आपको !

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