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बासन्ती  गन्ध
-----------
सोचा था,
उस पार ,
शान्त निर्विघ्न क्षणों में,
पहुंच,
तुम्हारी मधुरस्मृति को सतत करूंगा।।


अलसाये ललचाये मन की तृप्ति हेतु,
नवकल्पित स्वरूप में,
खुद को व्यथित करूंगा।।


पर हाय! निठुर इस विपुल पवन के
तीक्ष्ण शूल,
ले आये,
 बासन्ती  गन्धयुक्त मधु झरित फूल।।


रह गया भ्रमित इस पार,
प्रिये!
उस पार.…
तुम्हारी याद रही.…
अब बतलाओ ,
मैं,
मधुर तुम्हारे संस्पर्श को...
किन यत्नों से प्राप्त करूंगा??
---
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr T R Sukul on February 16, 2016 at 11:35am

प्रशंसा के लिए अपार धन्यवाद , आदरणीय सतविंदर जी।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 11, 2016 at 11:42pm
बहुत सुंदर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई आदरणीय सर जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 11, 2016 at 11:25pm

मेरे कहे का अनुमोदन करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय टी आर शुक्ल जी. 

सादर

Comment by Dr T R Sukul on February 11, 2016 at 11:14pm

आदरणीया राहिलाजी ! रचना को पसंद करने और प्रशंसा करने के लिए कोटिशः धन्यवाद। सादर.

Comment by Rahila on February 11, 2016 at 11:07am
आदरणीय शुक्ल सर जी! आपकी कविता पहली बार पढ़ी और आपको बधाई देने से। खुद को रोक ना सकी । इतने सुन्दर भाव लिये है रचना कि सीधे दिल में उतरती चली गई । बहुत बधाई आपको।सादर नमन ।
Comment by Dr T R Sukul on February 10, 2016 at 4:12pm

आदरणीय महोदय सौरभ पाण्डेयजी ! कविता पर आपकी स्नेहमयी दृष्टि ने सचमुच बासन्ती वयारि की मोहक सुगंध भर दी है। विनम्र आभार।
आपके द्वारा दिया गया संकेत शतप्रतिशत सत्य है , वह "बासन्ती " गन्ध ही होना चाहिए , टंकण की त्रुटि सुधारने का प्रयत्न करता हूँ। इसी प्रकार कृपा दृष्टि अपेक्षित है। ससम्मान।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 10, 2016 at 6:22am
अंतर्लय से अनुप्राणित इस कविता से निस्सृत मनस-द्वंद्व पाठक की संवेदनशीलता से तारतम्यता बैठा पाने सक्षम है.
हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ, आदरणीय टी आर शुक्ल जी.


एक विन्दु पर आपसे स्पष्ट होना चाह रहा था. बसंती पवन की गंध तो बासंती होगी न ?
सादर
Comment by Dr T R Sukul on February 7, 2016 at 11:29am

आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी ! रचना की अंतरंगता अनुभव करते हुए अपने मनोभावों को प्रकट करने के लिए कोटिशः धन्यवाद। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2016 at 11:57pm

आदरणीय टी आर शुक्ल जी इस गहन भावों से दिल में उतरती इस शानदार प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई। 

Comment by Dr T R Sukul on February 6, 2016 at 10:00pm

आदरणीय महोदय सुशील सरना जी! रचना की मार्मिकता परखने और उसे मान देने के लिए बहुत आभार।    

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