For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विस्थापित लघु कथा - जानकी बिष्ट वाही

चिता की नारंगी लपटें चटख धूप में एकसार हो रही हैं। दूर गाँव से आये पण्डित ने, जिसे ज़मील अहमद सरपंच बड़ी मुश्किल से समझा-बुझा कर लाया था। श्लोक पढ़ा-

" 'नैनं छिन्दति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः'।"
गाँव वालों हाथ में चीड़ की पत्तियाँ पकड़े, ग़मगीन आँखों से गाँव में बचे एक मात्र हिन्दू, पण्डित श्यामनारायण को पंचतत्व में विलीन होते देख रहे हैं।86 वर्ष के मोह के बाद आज़ वे सारे रिश्तों से मुक्त हो गए।

कौन से रिश्ते ? उनके नाते-रिश्तेदार,भाई -बहनऔर दोनों बेटे -बहुएं तो वर्षों पूर्व ही बन्दूक की डर से सारे रिश्ते खत्म कर बर्फ़ीले पहाड़ों को पार कर मैदानों में जा बसे।
पर पण्डित श्यामनारायण ने जन्मभूमि को न छोड़ने की मानों कसम खा रखी थी।

" ज़मील ! चाहे मेरे सीने में गोली मार दें पर मैं कहीं न जाने वाला।पूर्वजों की इस धरोहर को जीते जी तो नहीं ही त्यागूँगा।"

" देख श्याम ! मेरे जीते जी तुझे अपनी धरती से, कोई अलग नहीं कर सकता।ये मेरा वादा है।"

खूब निभाया वादा।मज़ाल कोई आँख उठाकर देखता।कई बार धमकी मिली ।पर गाँव वाले दीवार बन सामने आ गए।

श्यामनारायण अकेले डटे रहे।पर ये ज़ीना भी कोई ज़ीना था ?बिना क़सूर के अपनी ही मातृभूमि में विस्थापित होकर जीना ? इस दर्द को किससे बाँटते। अपनों से ,गाँव वालों से ,बन्दूक वालों से या फ़िर सरकार से।


मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 593

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Janki wahie on February 8, 2016 at 10:28pm
सादर आभार आ नीता जी
Comment by Nita Kasar on February 8, 2016 at 12:57pm
मातृभूमि माँ जितनी प्यारी होती है अपने भले छोड़कर चले जाये मातृभूमि का मोह अंत तक नही छूटता ।पूर्वज हमारे एेसे ही थे ।सारगर्भित कथा के लिये बधाई आद०जानकी वाही जी ।
Comment by Janki wahie on February 7, 2016 at 11:21am
सादर हार्दिक आभार आ. मिथिलेश सर जी ।आपकी कथा पर उपस्थिति मात्र ही मेरे लिए अनमोल मार्गदर्शन है। नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 7, 2016 at 12:53am

आदरणीया जानकी जी, प्रस्तुति अपने कथ्य को संप्रेषित करने में सफल लघुकथा. इस शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Janki wahie on February 6, 2016 at 5:52pm
सादर आभार आ. सतविंदर जी।आप हमेशा कथा की हौसला अफ़जाई करते है।नमन।
Comment by Janki wahie on February 6, 2016 at 5:51pm
तहेदिल से शुक्रिया ज़नाब समर कबीर जी।आपकी कथा पर टिप्पणी प्रसंशनीय है।उर्दू शब्दों को समझने में मदद करने के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Janki wahie on February 6, 2016 at 5:48pm
तहेदिल से शुक्रिया शहज़ाद जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 6, 2016 at 3:58pm
बहुत ख़ूब।बधाई आदरणीया
Comment by Samar kabeer on February 6, 2016 at 2:36pm
मोहतरमा जानकी जी आदाब,बहुत अच्छा लिखती हैं आप,आपकी लघुकथा अच्छा पैग़ाम दे रही है,ढेरों बधाई आपको इस रचना के लिये !
"ज़मील"नहीं "जमील"इसी तरह "मज़ाल"नहीं "मजाल" |
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 6, 2016 at 11:31am
बहुत ही उम्दा समसामयिक परिदृश्य पर बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया जानकी वाही जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service