1222 1222 1222 1222
न जाने हाथ में किसके है ये पतवार मौसम की
बदल पाया न कोई भी कभी रफ्तार मौसम की /1
सितम इस पार मौसम का दया उस पार मौसम की
समझ चालें न आएँगी कभी अय्यार मौसम की /2
अभी है पक्ष में तो मत करो मनमानियाँ इतनी
न जाने कब बदल जाए तबीयत यार मौसम की /3
उजाड़े जा रहा क्यों तू धरा से रोज ही इनको
दवाई पेड़ पौधे हैं समझ बीमार मौसम की /4
न आए हाथ उतने भी लगाए बीज थे जितने
पड़ी कुछ दोस्तो ऐसी फसल पर मार मौसम की /5
पहुँच कितनी भी बढ़ जाए भले ही चाँद मंगल तक
गुलामी ही करेगा पर सदा सन्सार मौसम की /6
बहुत सपने हैं आशा में जवाँ इस बार वो होंगे
लिखी हो यार रूसवाई न अब के बार मौसम की /7
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मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’
Comment
आ० भाई गिरिराज जी , आपकी उपस्थिति और सकारात्मक प्रतिक्रिया से मन अस्वस्थ हुआ .हार्दिक धन्यवाद .
अभी है पक्ष में तो मत करो मनमानियाँ इतनी
न जाने कब बदल जाए तबीयत यार मौसम की /3 क्या बात है भाई जी , वाह
आदरणीय लक्ष्मण भाई , रदीफ बहुत मुश्किल ले कर बहुत खूबसूरती से निभा लिया आपने , हार्दि बधाई ॥
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