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1222    1222    1222    1222
न जाने  हाथ में  किसके है ये पतवार  मौसम की
बदल पाया  न  कोई भी  कभी  रफ्तार मौसम की /1

सितम इस पार मौसम का दया उस पार मौसम की
समझ  चालें  न  आएँगी कभी  अय्यार मौसम की /2

अभी है पक्ष  में तो  मत  करो  मनमानियाँ इतनी
न जाने कब  बदल जाए  तबीयत यार मौसम की /3

उजाड़े  जा  रहा क्यों तू  धरा   से  रोज ही इनको
दवाई  पेड़  पौधे  हैं  समझ   बीमार  मौसम की /4

न आए  हाथ उतने  भी   लगाए  बीज थे जितने
पड़ी कुछ दोस्तो  ऐसी फसल पर मार मौसम की /5

पहुँच कितनी भी बढ़ जाए भले ही चाँद मंगल तक
गुलामी  ही करेगा  पर  सदा  सन्सार  मौसम की /6

बहुत सपने  हैं आशा में  जवाँ  इस बार वो होंगे
लिखी हो यार रूसवाई न अब के बार मौसम की /7
****************
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2016 at 11:14am

आ० भाई गिरिराज जी , आपकी उपस्थिति और सकारात्मक प्रतिक्रिया से मन अस्वस्थ हुआ .हार्दिक धन्यवाद .

Comment by kanta roy on February 25, 2016 at 10:47am
अभी है पक्ष में तो मत करो मनमानियाँ इतनी
न जाने कब बदल जाए तबीयत यार मौसम की ----- बहुत ही शानदार गजल कही है आपने आदरणीय लक्ष्मण जी । पढकर मजा आ गया । बधाई कबूल कीजियेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2016 at 4:58pm

अभी है पक्ष  में तो  मत  करो  मनमानियाँ इतनी
न जाने कब  बदल जाए  तबीयत यार मौसम की /3   क्या बात है भाई जी , वाह

आदरणीय लक्ष्मण भाई , रदीफ बहुत मुश्किल ले कर बहुत खूबसूरती से निभा लिया आपने , हार्दि बधाई ॥

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