For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महज इक हार से जीवन नहीं बुनियाद खो देता -ग़ज़ल

1222    1222    1222    1222
**************************************
न कोई दिन बुरा गुजरे  न कोई रात भारी हो
जुबाँ को  खोलना  ऐसे न कोई बात भारी हो /1

दिखा सुंदर तो करता है हमारा गाँव भी लेकिन
बहुत कच्ची हैं दीवारें  न अब बरसात भारी हो /2

न तो धर्मों का हमला हो  न ही पंथों से हो खतरा
न इस जम्हूरियत पर अब किसी की जात भारी हो /3

पढ़ा विज्ञान  है  सबने  करो  तरकीब  कुछ ऐसी
न तो  हो तेरह का खतरा न साढ़े  सात भारी हो /4

महज इक हार से जीवन नहीं बुनियाद खो देता
हमारे  हौसले   पर  फिर  न कोई मात भारी हो /5

समझ लेना चमन  में फिर  उठेगा  जलजला कोई
‘मुसाफिर’ पेड़ पर जब भी महज इक पात भारी हो /6


मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 675

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2016 at 12:02pm

आ० भाई मनोज जी हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2016 at 12:01pm

आ0 भाई धर्मेन्द्र कुमार जी, उत्साहर्धन के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2016 at 12:01pm

आ0 भाई गिरिराज जी , आपकी उपस्थिति और सकारात्मक प्रतिक्रिया से उत्साहदूना हुआ । इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2016 at 12:01pm

आ0 भाई रवि शुक्ला जी, गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। स्नेह बनाए रखें।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2016 at 12:01pm

आ0 भाई नादिर खान जी आपकी विस्तृत और सकारात्मक प्रतिक्रिखा से अत्यधिक उत्साहवर्धन हुआ । हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2016 at 12:00pm

आ0 भाई समर कबीर जी गजल पर उपस्थिति और अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by मनोज अहसास on March 2, 2016 at 3:57pm
बहुत बहुत बहुत बधाई
सादर
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2016 at 10:25am

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय लक्ष्मण जी, दाद कुबूल करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2016 at 8:43pm

महज इक हार से जीवन नहीं बुनियाद खो देता
हमारे  हौसले   पर  फिर  न कोई मात भारी हो -- बेहतरीन बात कही ! बहुत सुन्दर गज़ल कही है , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Ravi Shukla on March 1, 2016 at 6:02pm

आदरणीय लक्ष्‍मण जी बढिया अशआर हुए है शेर दर शेर बधाई कुबूल करें

न तो धर्मों का हमला हो  न ही पंथों से हो खतरा
न इस जम्हूरियत पर अब किसी की जात भारी हो ......आमीन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
5 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service