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प्यार के इस माह की यारो कहानी क्या कहें
बिन किसी के थम गयी है जिंदगानी क्या कहें /1
यूँ कभी खुशियों के मौसम भी छलकती आँख थी
दर्द से हट आँसुओं के अब तो मानी क्या कहें /2
आजकल बैसाखियों पर वक्त जाने क्यों हुआ
थी कभी किससे जवाँ वो इक रवानी क्या कहें /3
आप कहते हो अकेलापन सताता है बहुत
साथ अपने तो सदा यादें पुरानी क्या कहें /4
खुश रहे बस हो कहीं भी सीख ये तहजीब की
बेबफा के वास्ते अब बदजुबानी क्या कहें /5
वक्त ले आया हमें भी यार इस फुटपाथ पर
वैसे हम भी थे कभी यूँ खानदानी क्या कहें /6
देखते लाचार भौंरे सूना छत्ता हो गया
छोड़ बैठी है सिंहासन राज रानी क्या कहें /7
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० भाई जय नित जी उपस्थिति व् प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार l
आ० भाई गिरिराज जी प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने।
बधाई!!
आदरणीय लक्ष्मण भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करों ।
आ० भाई पंकज जी , इस सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई समर कबीर जी उपस्थिति से ग़ज़ल का मन बढ़ने के लिए हार्दिक आभार l
आ० भाई सुशील जी , ग़ज़ल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए तहेदिल से सुक्रिया l
प्यार के इस माह की यारो कहानी क्या कहें
बिन किसी के थम गयी है जिंदगानी क्या कहें /1
यूँ कभी खुशियों के मौसम भी छलकती आँख थी
दर्द से हट आँसुओं के अब तो मानी क्या कहें /2
वाह आदरणीय वाह खूबसूरत अहसासों के दिलकश अशआर ..... इस बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।
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