For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सफेद खून (लघुकथा )राहिला

"देखा अब्बा !मैं ना कहती थी कि अपना खून कभी सफेद नहीं होता।आखिर इतने सालों बाद,इतने मनमुटाव के बावजूद,जब भाई को मेरी बीमारी का पता चला तो आखिर सब भुला कर वो और भाभी आ ही गये ना।और पिछले एक महीनें से भाभी मेरा कितना ख्याल रख रही हैं । आपने देखा नहीं क्या? अब आप भी बीती बातें भुला दें।"
"तुम कुछ भी कहो बेटी! मैं उसे बहुत अच्छे से जानता हूं।पता नहीं अब उसे कौन सा लालच यहाँ खींच लाया । "
"अब्बा!आप भी कैसी बातें करते है! अच्छा छोड़े ये सब बातें सोचना,मैं जरा स्कूल का चक्कर लगा कर आती हूं।आज सारा प्रभार सौंप दूं,फिर पता नहीं कब लौटना होगा या. ."
"ऐसा ना कहो बेटी! माना ऑपरेशन में ज्यादा खतरा है लेकिन मेरा दिल कह रहा है तुम साथ खैरियत के घर लौटोगी मुझे यकीन है ।"
लेकिन ये तसल्ली आंखों को ना हो सकी और वो छलक पड़ी ।
"आज जब उसे ऑपरेशन के लिये ले जाया जा रहा था तो पिछली जाने कितनी ही बातें उसे याद आ रहीं थीं।चिकित्सक,अब्बा!को तसल्ली दे रहे थे । तभी भाई उसके नजदीक आया और झुककर धीरे से बोला-"आयज़ा !ये तो तुमसे छुपा नहीं कि इस आपरेशन में केवल तीस फीसदी ही उम्मीद है।मैं ये पूछना चाह रहा था कि स्कूल और तुम्हारी जमीन की कोई वसीहत वगैरह की है क्या तुमने? "
ये सुन,बड़ी बेयकीनी से उसने अपने बड़े भाई की ओर देखा,जिसके चेहरे पर उसके अच्छे होने की उम्मीद और होंठों पर दुआ नही, बल्कि उसके जाने का पूरा यकींन था ।दिल में दर्द की एक हूक उठी,और अब्बा!की बात कानों में गूंज गई।"पता नहीं अब कौन सा लालच फिर उसे यहाँ खींच लाया । "
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on February 25, 2016 at 8:15pm
आप सही कह रहे है आदरणीय सतविन्दर सर जी!वाकई बड़े बुजुर्गों का अनुभव बहुत कुछ जान समझ लेता है । बहुत शुक्रिया आपका ,आपने रचना के वक्त दिया ।सादर आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 25, 2016 at 4:15pm

लालच ही रिश्ता बन गया है ज्यादातर लोगों का आजकल.बड़े जो जिंदगी अनुभव लिए हैं,जल्दी ही भांप लेते हैं इरादों को.बेहद मार्मिक रचना आदरणीया राहिला जी.हार्दिक बधाई.

Comment by Rahila on February 25, 2016 at 1:23pm
आदरणीय पवन सर जी! जिस घटना से प्रेरित होकर मैंने ये रचना लिखी । वो शख्सियत इस रचना को पढ़ कर जरूर भावुक हो गयीं थी । और मैं आज भी सकते में हूं । आप ने जिन खूबसूरत शब्दों में हौसला अफज़ाई की उनके लिये बहुत शुक्र गुज़ार हूं ।सादर नमन
Comment by Rahila on February 25, 2016 at 1:14pm
आदरणीया अन्नपूर्णा जी !सराहना के लिये बहुत-बहुत आभार । आदरणीय योगराज जी के मार्गदर्शन में रचना को कस कर पुनः प्रस्तुत किया है । सादर
Comment by Pawan Jain on February 25, 2016 at 1:13pm

वाह राहिला जी बहुत ही बढ़िया कथा लिखी है आपने,यकीनन कई आंसू टपकाए होंगे आपने।बहुत बहुत बधाई ।

Comment by annapurna bajpai on February 25, 2016 at 12:38pm

बहुत खूब , सुंदर लघुकथा का संयोजन , आदरणीय योगराज सर के कथन पर अवश्य गौर करें । 

Comment by Rahila on February 24, 2016 at 11:12am
बहुत शुक्रिया आदरणीय योगराज जी!आपकी बात सिर आंखों पर। आज वाकई आपकी कसौटी पर कसती हुई अपनी रचनायों के देख कर अपनी खुशी ब्यां कर पाना मुश्किल हो रहा है । मैं अभी रचना को कसती हूं ।सादर

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:59am

बहुत ही भावपूर्ण लघुकथा कही है राहिला जी, बहुत खूबI

.

//ये सुन,बड़ी बेयकीनी से उसने अपने बड़े भाई की ओर देखा,जिसके चेहरे पर उसके अच्छे होने की उम्मीद और होंठों पर दुआ नही, बल्कि उसके जाने का पूरा यकींन था ।चिकित्सक तो बेहोशी में दिल चीरता,लेकिन यूं होश में उसके सगे भाई़़ ने ही...दो आंसू आंखों के कोर से ठुलक गये । आंखें खुद ब खुद बंद हो गयीं।और अब्बा!की बात कानों में गूंज उठी।"पता नहीं अब कौन सा लालच फिर उसे यहाँ खींच लाया । "//

यह पैरा ज़रूरत से ज्यादा बड़ा और बोझिल हो गया है, इसको सम्पादित कर चुस्त करें, लघुकथा और भी मार्क हो जाएगीI   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service