मुश्किल से माँ-बाप सालों बाद अपने बेटों से मिलने मुंबई पहुंचे थे। एक के बाद एक पांचों मुंबई में बस गए थे और उनमें से एक खो दिया था। डर लग रहा था कि कहीं ग़लत धंधों में तो नहीं पड़ गये फ़िल्मी दुनिया में दाख़िला पाने के मोह में। दो दिन ही हुये थे माहिम में बड़े बेटे के घर में रुके हुए । बेटे की वास्तविक माली हालत उसकी सेहत और घर देख कर कुछ समझ में नहीं आ रही थी। एक दिन चावल न खाने की बात पर बेटा बाप पर बरस पड़ा।
"अबे, बुढ़ऊ जो मिल रहा है चुपचाप खा ले, मेरी बीवी के पास इत्ता टाइम नहीं है रे कि तेरे लिए रोटियां सेंके!"
"नहीं, बेटा, बाप है तेरा, ऐसे नहीं बोलते!"- अम्मा ने समझाया।
"ये बाप है मेरा! आठवीं कक्षा में बार-बार फेल होने पर घर से बाहर निकाल देता था, तुम खिड़की से रोटियां देतीं थीं! ये वही बाप हैं न जो मेरे छोटे भाई को परीक्षा में फेल होने पर धूप में छत पर नंगा लिटाल कर डंडे से पीटता था!"
"बेटा, भूल जा पुरानी बातें, तुम्हारे भले के लिए ही तो करता था, पर तुम्हें तो फ़िल्मी दुनिया भा रही थी, हीरो बनना था तुझे!"
"हां देख ले अम्मा, हीरो नहीं तो लाइटमेन तो बन गया न। घर से न भागता, तो अब्बू की तरहा सुट्टा और सट्टा लगा रहा होता! देख, छोटे भाई को कैमरा मेन बना दिया, मंझला भी काम सीख गया है। और तेरे मोहल्ले के तीन-चार निकम्मे लौंडे भी मेरे अंडर में काम कर रहे हैं यहाँ! बस्ती के ग़रीब अनपढ़ बच्चों की कभी-कभार मदद भी कर देता हूँ अब! सब मुझे डॉक्टर सड्डन कहते हैं यहाँ..डॉक्टर सड्डन, समझीं!"
"लेकिन बेटा तूने शराब पी-पीकर क्या हाल कर लिया है अपना! तुझे कितनी बीमारियाँ हो गई हैं, चल वापस अपने शहर चल । अपनी छोटी सी दुकान अब बढ़ा लेना, नया कारोबार वहीं जमा लेना। यहाँ की ज़िन्दगी भी कोई ज़िन्दगी है!"-अब बाप ने रोते हुए समझाने की कोशिश की।
"अबे चुप्प, कुछ भी कहे जा रहा है! वापस लौटने की तो सपने में भी नहीं सोचूंगा, इस फ़िल्मी दुनिया में मैंने अपना प्यारा चौथा भाई खोया है! अपनी आँखों के सामने लाईटमेन का काम करते बिज़ली के करेंट से मरते देखा है! उसके ख़्वाब मैं पूरे करूँगा!- इस बार बोलते- बोलते वह भी रो पड़ा, और फिर माँ-बाप भी।
फिर अब्बू को सीने से लगा कर वह रोते हुए बोला- "मुझे माफ़ कर दो, मेरी ज़िद की वज़ह से तेरा प्यारा बेटा चला गया! तुम्हें कैसे बताऊं अब्बू, यहाँ हमने ख़ुद को और अपने भाइयों को अंडरवर्ल्ड और दहशतग़र्दों के चंगुल से कैसे बचा रखा और अपनी फैमिली को!"
[मौलिक व अप्रकाशित]
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हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!मानवीय संघर्ष की हृदय स्पर्शी प्रस्तुति!
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