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सूरज के तेवर (लघुकथा) [छंदोत्सव-58 चित्र से प्रेरित] /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

अपने दोस्त पेन्टर हबीब की नई पेन्टिंग को अरशद भाई बड़े ग़ौर से देख रहे थे। लाल, धूसर और काले रंगों से बनी पेन्टिंग में नदी के तट पर चिता तैयार करते युवक को और लकड़ियों से सजायी जा रही चिता को स्याह काले रंग से चित्रित किया गया था। लेकिन यह समझ नहीं आ रहा था कि सुरमई से दिख रहे आसमान में लालिमा सी फैलाता सूरज भोर के समय का है या सूर्यास्त के वक़्त का !

"कहाँ उलझ गए अरशद भाई, पेन्टिंग नहीं आयी समझ में?"

"समझ तो गया हूँ, बस यह बता दो हबीब भाई कि यह सूर्योदय का चित्रण है या फिर सूर्यास्त का?"

"भाई, तुम तो लघुकथाकार हो, साधारण में से असाधारण निकाल लेते हो, प्रतीकों में बड़ी-बड़ी बातें कह जाते हो, कुछ अलग नज़रिये से देख लो!"- पेन्टर हबीब ने चुटकी लेते हुए कहा।

अरशद भाई थोड़ी देर शांत रहे, फिर अचानक बोले- "सूर्य बहुत ज़ोर से हँस रहा है या बहुत क्रोधित हो रहा है, लालिमा यही दर्शा रही है!"

"तो लघुकथाकार साहब, इसका सबब भी बता दीजिए अब !"

"सूर्य हँस इसलिए रहा है कि मृतक इस दुनिया में खाली हाथ आया था और खाली चला गया, सूरज से मूर्ख ने कुछ नहीं सीखा ! "

"बात तो पते की है, लेकिन अगर सूरज को क्रोधित माने तो?"

"अगर सूरज बेइंतहां ग़ुस्से की वज़ह से लाल सा हो रहा है, तो पेन्टिंग के मुताबिक़ दो सबब हो सकते हैं! अव्वल तो यह कि ग्लोबल वार्मिंग के दौर में भी प्रदूषित नदी के तट पर पारम्परिक रस्म निभायी जा रही है। दूसरा यह कि मानव अपने समाज में अनेक बुराइयों का ढेर लगाता जा रहा है, उनका दाह-संस्कार करके समाज की आत्मा को रिहा करने की पहल नहीं कर रहा है!"

अरशद भाई का यह जवाब सुनकर लघुकथा-प्रेमी पेन्टर हबीब को भी अपनी बनाई हुई पेन्टिंग में ही कथ्य सम्प्रेषित करती कुछ लघुकथायें नज़र आने लगीं।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 9:58am
आदरणीय शहज़ाद जी , बात तो आपने चित्रों के अवलोकन और उस पर गहन चिंतन को बखूबी दिखाया है । शब्दांकन भी बहुत बढिया आपकी अपनी शैली भी रंग बिखेर रही है , लेकिन कथ्य क्या है इस लघुकथा में । आपको मालूम है कि लघुकथा हमेशा एक उद्देश्य के तहत ही लिखी जाती है । तो लघुकथा का संदेश, उद्देश्य कहाँ रोपित है इसमें ?
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 22, 2016 at 3:44pm
रचना का अवलोकन करने व हौसला बढ़ाने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी व आदरणीया राहिला जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 22, 2016 at 2:15pm
बहुत ख़ूब।
Comment by Rahila on February 22, 2016 at 1:49pm
जबरदस्त रचना आदरणीय उस्मानी जी !बहुत खूब, पर्यावरण के बिगड़ते हालात पर शानदार तंज । बहुत बधाई आपको ।सादर

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