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प्रयास पर हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद आ० गिरिराज भंडारी जी, आ० रवि शुक्ल जी, आआ० श्याम नारायण वर्मा जी, आ० धर्मेन्द्र जी
आ० नादिर खान जी,
मतले के लिए आपका सुझाव सुन्दर है , पर ऊला मिसरे का भाव बदल रहा है उससे.
मतले को इस तरह कहा है अब, देखिएगा
क़त्ल कर दे न मुझे ! सोच के डर जाती हूँ
उसकी नफरत का ज़हर देख सिहर जाती हूँ
आ! बिछा दे, मेरी राहों में ज़रा अंगारे
जितना जलती हूँ मैं उतना ही निखर जाती हूँ --- लाजवाब !! आदरनीया प्राची जी बढ़िया गज़ल के लिए हादिक बधाई आपको ।
आदरणीया प्राची जी खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद बहुत अच्छे भाव उभर कर आये हैं ।
क्या मतले के शेर को ऐसा कहा जा सकता है। ..
मेरी हस्ती ही मिटा दे! जो अखर जाती हूँ।
इतनी नफरत से न यूँ देख सिहर जाती हूँ।
आदरणीया प्राची जी सुन्दर गजल के लिये बधाई स्वीकार करें ।
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! |
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