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2122 1212 112/22

वक्त का अब हिसाब कौन रखे
अपनी आँखों में आब कौन रखे

वक्त आखिर गुज़र ही जायेगा
सो तबीअत ख़राब कौन रखे

जब मुअय्यन नहीं कि कल क्या हो
तो भला इज़्तिराब कौन रखे

जब हर इक नक़्श तेरा किस्सा है
साथ अपने क़िताब कौन रखे

मुस्कुराने के हैं सबब लाखों
रुख पे अपने नक़ाब कौन रखे

सच से क्यों हो गुरेज़-पा कोई
थाली में आफ़ताब कौन रखे

फूट ही जाना है रवाँ होकर
सत्ह-ए-दिल पर हुबाब कौन रखे

मु्अय्यन-तय; इज़्तिराब-बेचैनी; नक़्श-तस्वीर; गुरेज़पा-बचके चलने वाला; आफ़ताब-सूरज;
हुबाब- बुलबुला

मौलिक,अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 11:11am

वक्त आखिर गुज़र ही जायेगा
सो तबीअत ख़राब कौन रखे...वाह !  वाह ! बहुत  ही  उम्दा शेर  है  . बधाई  आपको इस  बेहतरीन  ग़ज़ल  के  लिए  आदरणीय शिज्जु शकूर जी .

Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:20am
आदरणीय बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है
Comment by रामबली गुप्ता on March 15, 2016 at 7:05pm
इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल से मुबारकबाद कुबूल फरमाएं आ.
Comment by Ravi Shukla on March 15, 2016 at 12:53pm

आदरणीय शिज्‍जू जी बहुत ही बढिया शेर कहे है आपने शेर दर शेर दिली दाद कुबूल करें ।

वक्त आखिर गुज़र ही जायेगा
सो तबीअत ख़राब कौन रखे  बहुत ही बढि़या सकारात्‍मक विचार वाला शेर है पुन: बधाई

Comment by Samar kabeer on March 14, 2016 at 11:27pm
जनाब शिज्जु शकूर जी,आदाब,इस मुश्किल ज़मीन में बहुत अच्छे अशआर निकाले आपने,इस शानदार ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2016 at 11:31am

आ० भाई शिज्जु जी , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई .

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