" पापा मुझे कुछ रूपये चाहिए " ड्यूटी पर निकलने को तैयार भँवरलाल , बेटे की आवाज पर चौंक उठे ।
" कितने बार कहा , ड्यूटी पर जाते वक्त मत टोका करो , अभी तो दिये थे पिछले हफ्ते दस हजार ,उसका क्या हुआ ? "
" दस हजार से होता क्या है पापा ! सारे खर्च हो गये " नजरें चुराते हुए उसने कहा ,तो भँवरलाल ठठा कर हँस पड़े ।
" बता कितना चाहिए ? " जेब में पर्स टटोलते हुए पूछा ।
" सिर्फ चालिस हजार "
" क्या ,इतने सारे रूपये ! कौन सा ऐसा काम आन पड़ा ? "
" उससे आपको मतलब नहीं , बस आपको देना ही है " पापा को उत्तर देने के बजाय ,वह अचानक गुर्रा उठा ।
" अच्छा ,अच्छा ,ठीक है ,नहीं पूछता , यह लो दस हजार , अभी इतने से ही काम चला लो ,बाकी के शाम को इंतजाम करके देता हूँ " कहकर वह बाहर आ , गाड़ी स्टार्ट कर विदा हुए । रास्ते भर रुपये की जुगत सोचते रहे । इकलौता जवान बेटा है । ऐश - ठाठ से रहे ,आखिर कमाता भी तो इसी के लिये हूँ , मन पितृत्व से आल्हादित हो उठा ।
सामने पान की गुमठी पर गाड़ी रोक लिया ।
" भीखू भाई , पान खिला जल्दी से , हरी - हरी ताजी पत्तियों वाला , बहुत तलब लगी है "
" अरे , थानेदार साहब , अभी धंधे का वक्त है , शाम को वसूली कर लेना ,तुम्हारी सारी तलब मिटा दूंगा , अभी जाओ , तुमको देखकर लौंडे लोग बिदक जायेंगे । "
" नशे का धंधा का भी कोई टाईम होता है भला ,तलबगार दिन - रात नहीं देखता है । चल निकाल, घर में जरूरत है । वादा करके आया हूँ । "
" तुम नहीं मानोगे , अच्छा ,ये लो साहिब "
" अरे , इतने कम से काम नहीं चलेगा आज , पूरा चालिस ही चाहिए "
" अपना धंधा अभी बाकी है साहब "
" मै नहीं जानता ,मुझे अभी चालिस के चालिस ही चाहिए "
" यह लीजिए और बख्स दीजिये मुझे , जल्दी जाईये ,मेरा ग्राहक आ रहा है । "
रूपयों को जेब में तसल्ली से ठूँस ,खुशी से गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ गये। सामने आईने में अपने मूंछों तो ताव देते हुए चेहरा देख रहे थे कि पीछे गुमठी पर किसी को देख , सशंकित हो वापस गाड़ी घुमाये ।
गुमठी पर नशे की पुड़िया हाथ में लिए , सौदेबाजी में लिप्त , सामने खड़ा एकलौते बेटे को देख , वह पसीने से तरबतर हो छटपटा उठे ।
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
आपने इस लघुकथा का मूल भाव को सही तरह से पकड़ा है आदरणीय सुनील जी . ह्रदय से आभार आपको
आभार आपको आदरणीय रामबली जी तहेदिल
आपके द्वारा कथा पर प्रशंसात्मक प्रतिक्रया पाना मन को हर्षोल्लास से भर जाता है आदरणीय समर जी . आभार आपको
कथा पर मेरा प्रोत्साहन करने के लिए बहुत -बहुत आभार आपको आदरणीय तेजवीर जी
आपको कथा का पसंद आना मेरे लिए आज का लेखन सार्थक हुआ आदरणीय पवन जी . आभार आपको ह्रदय से .
// यह तो हम सोचते हैं कि पैसा घूमता है , सच तो यह है कि पैसा तो सिर्फ एक पर्चा , एक माध्यम है , घूमता तो आदमी खुद है।
घुमाने वाला भी उसी के अंदर का आदमी है , पैसे की क्या औकात कि किसी को घुमा दे।// ------वाकई में ये आपने बहुत बड़ी बात कही है आपने आदरणीय विजय जी तहेदिल आभार आपको कथा पर समीक्षात्मक प्रतिक्रया के लिए .
बिलकुल सही कह रही है आप आदरणीया राहिला जी कि हराम का माल से किसी की उन्नति नहीं होती है . आपने कथा के मर्म को एकदम सही पकड़ा है . आभार आपको ह्रदय से
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बेहतरीन प्रस्तुति!
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