For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिलन / गद्यगीत पर एक प्रयास

जैसे ही धरती को छूने आकाश नीचे सरक कर आया कि अपने में सिमटती धरती घुटनों पर झुक गई।
ऊँचे - ऊँचे पहाड़ों में ,निस्पंद- सा देवदार अपने ही साये में सिमटकर खड़ा रहा। पहाड़ों को भी अब अपनी अलंध्यता गलत साबित हो रही थी । उल्लासमय वातावरण में
मायावी संगीत-सी , अलग - अलग ताल ,अलग - अलग रंगों में सपने ,एक अविस्मृत अद्भुत मायाजाल -सी फैला गई । मोह - पाश का बँधन और मुक्ती की यातनामय चाहना , धूप के संग -संग पल -छिन उजालों के रंगों का भी बदलना , मन की अतल गहराईयों से निकलकर उगते चाँद पर सिन्दूरी रंग की झीनी - सी चादर चढ़ रही थी ।
आकाश के चेहरे का आलोक - मण्डल प्यार की अनोखी चमक को आभासित करता धरती को साक्षात् देवदूत के खड़े होने की अनुभूति दे रहा था । धरती पुलक रही थी । आकाश मुस्कुरा रहा था ।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 921

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 17, 2016 at 3:56pm

आ. कांता रॉय जी नई विधा और दिलकश प्रस्तुति  .... वाह भावों सुंदर प्रस्तुति  ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by kanta roy on May 16, 2016 at 11:23pm
गद्यगीत संदर्भ में दो शब्द ---- हिन्दी साहित्य में गद्य की अनेक विधायें प्रचलित है जिसमें एक गद्यगीत भी है । इसकी भाषा गद्य होती है और भाव पद्य का अर्थात गद्यरूपी शरीर में काव्यरूपी आत्मा का निवास होता है । अलंकारों का प्रयोग इसमें खुलकर होता है और यह भावों की लय और ध्वनि से परिपूर्ण होता है । सच कहे तो गद्यगीत गीतिकाव्य और मुक्तक काव्य के अधिक निकट होती है । अतुकांत और गद्यगीत में इतना साम्य है कि यह प्रश्न मेरे मन में भी आया था कि गद्यगीत और अतुकांत क्या एक ही चीज़ है ? चर्चा करने के दौरान मैने पाया कि काव्यमय अतुकांत में सम्पूर्ण वाक्य की अनुभूति नहीं होती है कहीं भी , जबकि गद्यगीत गद्य के भाव में कथा -तत्व का संवहन कर वाक्य की सम्पूर्णता के साथ गद्य के सहजानुभूति की अभिव्यक्ति को आधार देती है ।
सादर !
Comment by kanta roy on May 16, 2016 at 10:58pm
वाह ! अभिभूत हुई मै इस गद्य को काव्य में परिवर्तन से । बहुत सुंदर व सार्थक साहित्यिक धर्म का निर्वाह हुआ है आपके द्वारा आदरणीय डाॅ गोपाल नारायण जी । हृदय से अभिनंदन आपको ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 16, 2016 at 9:34pm

धरती पुलक रही थी ----हटा देना है . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 16, 2016 at 9:32pm

आ० कांता जी , गद्य गीत क्या होता है  / शायद होता हो . मैं स्पष्ट नहीं हूँ . शायद कोई प्रकाश डाल सके. मेरी नजर में आज की अतुकांत कविता स्वय में गद्य गीत है .... मैं आपकी कविता को उस रूप में लाने की कोशिश करता हूँ . सादर .

धरती को छूने

आकाश ज्योही सरक कर

नीचे आया

मैं

अपने आप में सिमटती

धरती पर झुक गयी

ऊँचे - ऊँचे पहाड़ों में

निस्पंद- से  देवदार

सिमटे खड़े रहे

अपने ही साये में

पहाड़ों को अब भी

लगता वे अलंघ्य हैं \

था एक

उल्लास

वातावरण में
मायावी संगीत

अलग - अलग ताल ,

अलग - अलग रंगों के

अनमोल सपने ,

अविस्मृत अद्भुत

रहस्य ,  मायाजाल 

मोह - पाश का बँधन

मुक्ति की यातनामय चाह

धूप के संग -संग पल -छिन
उजालों के रंग

उनका का भी बदलना

पल छिन ,

मन की अतल

गहराईयों से निकलता 

उगता चाँद

उस पर चढ़ती

झीनी - सी चादर

सिन्दूरी रंग की
आकाश के चेहरे का

वह आलोक 

वह प्रभामंडल  

प्यार की अनोखी खनक 

आभासित करता

धरती को

साक्षात् देवदूत

और उसके 

खड़े होने की अनुभूति 

पुलकती धरती  धरती पुलक रही थी ।

मुस्कुराता आकाश        

घुटनों के बल

(सीधे पोस्ट पर कोशिश की है वरना और बेहतर हो सकता था ) सादर.

Comment by kanta roy on May 16, 2016 at 8:15pm
आदरणीय जयनित जी , आदरणीय सतविंद्र जी और आदरणीया राहिला जी रचना पसंदगी के लिये हृदय से आप सभी को आभार व्यक्त करती हूँ ।
Comment by Rahila on May 16, 2016 at 5:37pm
आदरणीया कांता दी!इस विधा से पूर्णतः अनजान हूं ।लेकिन रचना के भाव इतने जबरदस्त है कि तारीफ़ किये बगैर ना रह सकी । बहुत बधाई ।सादर नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2016 at 4:34pm
भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई वन्दनीया दीदी।एक नै विधा से रु ब रु करवाने के लिए सादर आभार।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 15, 2016 at 3:18pm
आदरणीया कान्ता रॉय जी, रचना का प्रारूप तो समझ में नहीं आया, पर भाव ऐसे हृदय स्पर्शी हैं कि निःशब्द हूँ।
सादर!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service