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होली पर एक प्रेम गीत....//डॉ. प्राची

माही तेरा रंग गुलाबी, सब रंगो में सबसे से गहरा

रंग भरी ले कर पिचकारी
क्यों करता नटखट अठखेली,
हाय! मेरी चूनर रंग डाली
चुहल करे हर एक सहेली,
पायल की रुनझुन में गुपचुप, मगर लाज का गूँजा पहरा।

इस अबीर का रंग है पक्का
लग जाए फिर ये ना छूटे,
बंधन ऐसा प्रेमपाश का
जुड़ जाए फिर ये ना टूटे,
शब्द-शब्द अंतर से उतरा, पर आँखों में आ कर ठहरा।

माही के रंगो में सोनी
सोनी के रंग रंगा माही,
ढले एक दूजे के ढंग में
जन्मों के जैसे हमराही,
कञ्चन सी दमकी यूँ काया, चाँद खिला ज्यों आज सुनहरा।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on March 22, 2016 at 7:33pm

माही के रंगो में सोनी
सोनी के रंग रंगा माही,
ढले एक दूजे के ढंग में
जन्मों के जैसे हमराही,
कञ्चन सी दमकी यूँ काया, चाँद खिला ज्यों आज सुनहरा।

वाह वाह वाह आदरणीया प्राची सिंह जी बहुत ही सुंदर और प्रेम रस के रंगों में डूबे इस गीत के क्या कहने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 22, 2016 at 10:58am

ज्मनोहारी  होली  का  गीत  | वाह  ! हार्दिक  बधाई  संग  होली  की  शुभ कामनाएं डॉ.प्राची जी 

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