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हँसी दो चार दिन की है...(ग़ज़ल) //डॉ. प्राची

1222.1222.1222.1222

हैं बस दो-चार दिन आँसू, हँसी दो-चार दिन की है।
सँजोयें क्या भला, जब ज़िन्दगी दो-चार दिन की है?

भले हो काँस्य या कञ्चन ये कारागार टूटेगा
यहाँ पर श्वास केवल बंदिनी दो-चार दिन की है।

अँधेरी रात से लड़ने को इक दीपक सहेजें खुद
मिली जो रहमतों की रौशनी, दो-चार दिन की है।

पिये हर घूँट में नदिया, वही लहरों में इतराए
समंदर की भला कब तिश्नगी दो-चार दिन की है?

मेरी आँखों में गर देखो, तो पत्थर दिल पिघल जाए
मुझे मालूम है ये बेरुखी दो-चार दिन की है।

तुम्हारा झूठ चिल्लाए भले, पर सच ही जीतेगा
लबों पर है जो सबके, सनसनी दो-चार दिन की है।

तेरे पहलू में जो लाए, नहीं रेखा वो हाथों में
कहूँ कैसे ये चुभती सी कमी दो-चार दिन की है?

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Ashok Kumar Raktale on March 17, 2016 at 11:35pm

भले हो काँस्य या कञ्चन ये कारागार टूटेगा
यहाँ पर श्वास केवल बंदिनी दो-चार दिन की है।........वाह ! बहुत खूब.

बहुत बधाई आदरणीया डॉ.प्राची सिंह जी इस सुन्दर गजल के लिए.सादर.

Comment by Ravi Shukla on March 17, 2016 at 3:12pm

आदरणीया प्राची जी बहुत बढि़या गजल है बधाई स्‍वीकार करें

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 17, 2016 at 3:04pm
बढ़िया डॉ प्राची सिंह जी सादर बधाई
Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 1:20pm
वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल कही है। दिली मुबारकबाद कुबूल फरमाएं आ. प्राची बहन।सादर
Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 6:24pm
मोहतरमा डॉ.प्राची सिंह साहिबा आदाब,बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 12:50pm
आदरणीया कुछ शे'र तो बहुत सुन्दर हुए है बधाई
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2016 at 10:57am

बहुत सुन्दर हार्दिक बधाई आ० प्राची बहन l

Comment by narendrasinh chauhan on March 15, 2016 at 1:50pm

बेहेतरीन ग़ज़ल, लाजवाब शेर

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