For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नव गीत उसने यूँ ही कहा गीत रचता हूँ  मैं आप हैं कि मुझे आजमाने लगे

यह हुनर तो मिला है मुझे जन्म से  मांजने में इसे पर जमाने लगे

गीत रचना हँसी- खेल सा कुछ नहीं

यह सभी को मिला शाश्वत दंड सा

टूटता है ह्रदय जब सुमन-दंश से

तब महकता है नव-गीत श्रीखंड सा

ताप तुमने विरह का सहा ही नहीं प्रेम का ग्रन्थ मुझको थमाने लगे

नेह की भावना में प्रखर भक्ति हो

एक पूजा उदय हो उदय शक्ति हो

प्यार-व्यापार हो कामना से रहित

ज्योति सी जल रही दिव्य अनुरक्ति हो

सिद्ध तब गीत होता है जब भावना मौन अंतस में धूनी रमाने लगे

हो करुण–रस बसा जब ह्रदय-कोश में

शारदा से मिला मुक्त वरदान हो

वेदना का प्रभंजन उठे काल सा

आंसुओं से भरा भाव अवदान हो

गीत तब शीत के पुष्प सा हो उदय रौप्य के छत्र सा चमचमाने लगे


जो अभावों में पलता रहा बेखबर

जिसको मिलता नहीं कुछ भी संसार में

जंग जिसने लड़ी जिदगी की सदा

जिसने कांटे सजाये थे अभिसार में

भूल जाता है दुखिया सभी क्लेश जब भावना में मनोगति समाने लगे

आज कोई भी वीणा बजाता नहीं

साज है किन्तु कोई सजाता नहीं

वीणावादिनिको कवि पूजते हैं सदा

हंत ! कोई हमें राग आता नही

सबमनीषी यहाँ पर स्वयम् सिद्ध हैं कवि बने कीर्तिकंचन कमाने लगे

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 3, 2016 at 3:35pm

पंक्ति दर पंक्ति पढ़ते आनन्द आता गया। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on April 2, 2016 at 7:48pm

गीत रचना हँसी- खेल सा कुछ नहीं
यह सभी को मिला शाश्वत दंड सा
टूटता है ह्रदय जब सुमन-दंश से
तब महकता है नव-गीत श्रीखंड सा
ताप तुमने विरह का सहा ही नहीं प्रेम का ग्रन्थ मुझको थमाने लगे
वाह आदरणीय वाह बहुत ही सुंदर नवगीत ... मैं आदरणीय रमबंली गुप्ता जी की टिप्पणी का समर्थन करता हूँ कि ये महागीत है। इस प्रवाहमयी सुंदर शब्दों की कल कल करती गीत सरिता की प्रस्तुति के लिए दिल बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. गोपाल भाई साहिब।

Comment by रामबली गुप्ता on April 2, 2016 at 11:38am
ये नवगीत नही महान गीत है। हृदयतल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय गोपाल नारायण जी।सादर नमन आपको। आप देखेगें इस गीत में 212 का बह्र है जिसके कारण गेयता और प्रवाह बहुत ही सुंदर हो गया है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"जी अबपोस्ट की ग़ज़ल  गिरहके  साथ        "
9 minutes ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा गिरा टूट कर…"
10 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। आ. भाई तिलकराज जी की बात से सहमत…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। सजल का प्रयास अच्छा हुआ है। कुछ अच्छे शेर हुए हैं पर कुछ अभी समय चाहते…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई गजेन्द्र जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई तिलकराज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, प्रशंसा, मार्गदर्शन और स्नेह के लिए हार्दिक…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, गजल का सुंदर प्रयास हुआ है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी सादर अभिवादन। एक जटिल बह्र में खूबसूरत गजल कही है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अच्छे शेर हुए। मतले के शेर पर एक बार और ध्यान देने की आवश्यकता है।"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेन्द्र जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका  ग़ज़ल को निखारने का पुनः प्रयास करती…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका, बेहतरी का प्रयास ज़रूर करूँगी  सादर "
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"ग़़ज़ल लिखूँगा कहानी मगर धीरे धीरेसमझ में ये आया हुनर धीरे धीरे—कहानी नहीं मैं हकीकत…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service