For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर- कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो

१२१२ /११२२ /१२१२ /२२ (११२)
.
कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो,
जो कश्तियाँ नहीं लौटीं उन्हें दुआ में रखो.
.
ग़ज़ब सितम है इसे यूँ अलग थलग रखना,
शराब ज़ह’र नहीं है इसे दवा में रखो.
.
इधर हैं बाढ़ के हालात और उधर सूखा,
हमारी दीदएतर अब, उधर फ़ज़ा में रखो.
.
शबाब हुस्न पे आया तो है मगर कम कम,
है मशविरा कि हया भी हर इक अदा में रखो.
.
तमाम फ़ैसले मेरे तुम्हे लगेंगे सही,
अगर जो ख़ुद को कभी तुम मेरी क़बा में रखो.  
.
ज़बां पे जो भी रहे वो निगाह में भी रहे,
ये तालमेल इरादों में ....इल्तिजा में रखो.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 855

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 2, 2016 at 7:57pm
जनाब सौरभ पांडे जी आदाब,'दीद'स्त्रीलिंग है और "दीदा"पुल्लिंग",डिक्शनरी में यही बताया गया है ।
"ग़ज़ब"का पहला अर्थ है'ग़ुस्सा','कहर',दूसरा अर्थ वो है जो आपने समझा है यानी'कलमए हैरत','ग़ज़ब'की जगह 'बड़ा'रखने से मिसरा बिलकुल साफ़ हो जाता है ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 7:39pm

बहुत खूब नीलेश भाई ! वाह ! 

आदाब के साथ सवाल आदरणीय समर साहब से - 

दीद-ए-तर पुल्लिंग क्यों हो आदरणीय समर साहब ? दीद को किस हिसाब से पुल्लिंग किया जाना सही होगा ? क्योंकि तर तो विशेषण है. (जिसका अर्थ आर्द्र या नम होता है).

दूसरी एक और बात, सितम अवश्य ’बड़ा’ होता है. लेकिन, यदि चकित हुआ कोई शख़्स उसके लिए ’ग़ज़ब’ कह दे यह विस्मयाधिबोधक शब्द की तरह प्रयुक्त होगा. जोसही ही होगा.  ऐसे में वैसी गलती नहीं मालूम हो रही, जैसी ’बड़ा’ और ’बहुत’ के घालमेल से अकसर हुआ करती है.  

आपकी नेक सलाह की प्रतीक्षा है, आदरणीय.

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 6:52pm
आ. नीलेश जी, लीक से हटी एकदम अलग तरह की ग़ज़ल कहने के लिए बधाई आपको।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2016 at 2:25pm

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 2, 2016 at 1:51am

आदरणीय निलेश जी बहुत शानदार ग़ज़ल कही है. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

आदरणीय समर कबीर जी का हार्दिक आभार इस्लाह के लिए. 

//दूसरे शैर के ऊला मिसरे में'ग़ज़ब'की जगह "बड़ा"शब्द // इस अनुपम सीख ने बहुत कुछ सिखा दिया. समझा दिया. वाकई 'गज़ब' को 'बड़ा' लिखने की महत्ता को ही समझना है. ग़ज़ल कहने का हुनर यों ही नहीं आ जाता बहुत गहराई से विचारना और फिर सही शब्द देना बहुत जरुरी है. आपकी टिप्पणी पढ़ते तक 'गज़ब' शब्द मुझे भी अजीब नहीं लगा बल्कि सामान्य लगा या कहूं सही लगा. लेकिन आपकी टिप्पणी के बाद अपनी भूल समझ आई. मुझे अभी बहुत मेहनत करनी होगी. दिल्ली अभी बहुत दूर है. सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2016 at 8:22pm

जनाब नीलेश नूर साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। ......... शेर 2 के उला मिसरे में गज़ब सितम की जगह ज़ियादती शब्द ठीक रहेगा क्या ? ... सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 6:43pm

शुक्रिया 

Comment by Anuj on May 1, 2016 at 5:34pm

कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो,
जो कश्तियाँ नहीं लौटीं उन्हें दुआ में रखो. 

"नई ग़ज़ल" का प्रतिनिधि शेर ! ऐसे और शेरों के लिए दुआगो हैं ...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 4:10pm

शुक्रिया आ. समर सर... मूल प्रति में बदलाव किये लेता हूँ ..

Comment by Samar kabeer on May 1, 2016 at 4:02pm
जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
दूसरे शैर के ऊला मिसरे में'ग़ज़ब'की जगह "बड़ा"शब्द मुनासिब होगा क्या ?
तीसरे शैर के सानी मिसरे में'हमारी दीदए तर'की जगह "हमारा दीदए तर"करलें क्योंकि डी "दीदए तर"पुल्लिंग है ।बाक़ी शुभ शुभ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service